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मान्यखेट (दक्षिण ) के राष्ट्रकूट इसका दूसरा ताम्रपत्रं श. सं. ८८० ( वि. सं. १०१५ ई. स. १५८ ) का है । यह करहाड से मिला है। इससे प्रकट होता है कि, इसने अपनी दक्षिण की विजय के समय चोलदेश को उजाई कर, पाण्ड्यदेश को विजय किया; सिंहल नरेश को अपने अधीन कर, उधर के मांडलिक राजाओं से कर वसूल किया; रामेश्वर में इस विजय का कीर्तिस्तम्भ स्थापन किया; और कालप्रियगण्डमार्तण्ड, और कृष्णेश्वर के मन्दिर बनवाने के लिए गाँव दान दिया।
इसका सातवां लेख शै. सं. ८८४ ( वि. सं. १०११-ई. स. ६६२ ) का है । यह देवीहोसूर से मिला है। ___ इसके समय के विना संवत् के आठ लेख क्रमशः इसके सोर्लहवें, सत्रहवें, उन्नीसवें, इक्कीसवें, बाईसवें, चौबीसवें, और छब्बीसवें राज्य वर्ष के हैं । इनमें सत्रहवें राज्यवर्ष के दो लेख हैं । नवें लक्ष्मेश्वर से मिले लेख में संवत् या राज्यवर्ष कुछ भी नहीं दिया है । ये सब तामील भाषा में लिखे हुए हैं । __इनमें भी इसको काञ्ची, और तंजई ( तंजोर ) का जीतनेवाला लिखी है । इसके छब्बीसवें राज्यवर्ष के लेख में; जिस वीरचोल का उल्लेख है, वह शायद गङ्गवाण पृथ्वीपति द्वितीय होगा।
(१) ऐपिग्राफिया इगिडका, भा० ४, पृ. २८१ (२) इसकी पुष्टि कृष्णराज के जूरा नामक गाँव से मिले लेख में भी होती है ( ऐपि.
ग्राफिया इण्डिका, भा० १६, पृ. २८७) इस घटना का समय वि० सं० १००४
(ई. स. ६४७) माना जाता है। (३) कीलहार्स लिस्ट मॉफ दि इन्सक्रिपशन्स ऑफ सदर्न इण्डिया, नं• EL (४) साउथ इण्डियन इन्सक्रिपशन्स, भा. ३, नं० ७, पृ. १२ (५) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ७, पृ० १३५ (६) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ३, पृ० २८५. (७) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ५, पृ. १४२ (८) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ७, पृ. १४३ (E) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ७, पृ. १४० (1.) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ४, पृ. ८३ (११) ऐपिग्राफिया इगिंडका, भा० ३, पृ० २८४ (१२) उस समय काश्ची में पल्लवों का, और जोर में चोलों का राज्य था।
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