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मान्यखेट (दक्षिण) के राष्ट्रकूट महाकवि पुष्पदन्त भी कृष्णराज तृतीय के समय ही मान्यखेट में आया था, और वहीं पर उसने, मंत्री भरत के आश्रय में रहकर, अपभ्रंश भाषा के 'जैनमहापुराण' की रचना की थी। इस ग्रन्थ में मान्यखेट के लूटे जाने का वर्णन है । यह घटना वि. सं . १०२९ (ई. स. १७२) में हुई थी। इससे ज्ञात होता है कि, पुष्पदन्त ने यह 'महापुराण' कृष्ण तृतीय के उत्तराधिकारी खोडिग के समय समाप्त किया था । इसी कवि ने 'यशोधरचरित' और 'नागकुमारचरित' भी लिखे थे। इन में भरत के पुत्र नन्न का उल्लेख है। इसलिए सम्भवतः ये दोनों ग्रन्थ भी कृष्ण तृतीय के उत्तराधिकारियों के समय ही बने होंगे।
करंजा के जैनपुस्तकभंडार में की 'ज्वालामालिनीकल्प' नामक पुस्तक के अन्त में लिखा है :
"श्रष्टाशतसैकषष्ठिप्रमाणशकवत्सरेवतीतेषु । श्रीमान्यखेटकटके पर्वण्यक्षयतृतीयायाम् ॥ शतदलसहितचतुश्शतपरिणामग्रन्थरचनयायुक्तम् ।
श्रीकृष्णराजराज्ये समाप्तमेतन्मतं देव्याः ॥" अर्थात्-यह पुस्तक श. सं. ८६१ में कृष्णराज के राज्य समय समाप्त
इससे श. सं ८६१ (वि. सं. १९६-ई. स. १३९) तक कृष्णराज का ही राज्य होना पाया जाता है।
१८ खोहिंग यह अमोघवर्ष तृतीय का पुत्र, और कृष्णराज तृतीय का छोटा भाई था। तथा कृष्णराज के मरने पर उसका उत्तराधिकारी हुआ । करडा (खानदेश) से मिले, श. सं. ८६४ के, ताम्रपत्र में लिखा है:
"स्वर्गमधिरूढे च ज्येष्ठे भ्रातरि श्रीकृष्णराजदेवेयुवराजदेवदुहितरि कुन्दकदेव्याममोघवर्षनृपाजातः। खोट्टिगदेवो नृपतिरभूद्भवनविख्यातः ॥ १६ ॥"
(१) मसाहित्य संशोधक, खण्ड २ अङ्क. ३, पृ. १४५-१६६ (२) इविन्यन ऐपिटक्केरी, भा. १२, पृ. २६४
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