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राष्ट्रकूटों का इतिहास अर्थात्-बड़े भाई कृष्णराजदेव के मरने पर, युवराजदेव की कन्या कुन्दकदेवी के गर्भ और अमोघवर्ष के औरस से उत्पन्न हुआ, खोष्टिगदेव गद्दी पर बैठा।
यद्यपि जगतुङ्ग खोटिंग का बड़ा भाई था, तथापि उसके कृष्णराज तृतीय के समय में ही मरजाने से यह राज्य का अधिकारी हुआ।
खोट्टिग की ये उपाधियां मिलती हैं:-नित्यवर्ष, रट्टकन्दर्प, महाराजाधिराज परमेश्वर, परमभट्टारक, श्रीपृथ्वीवल्लभ आदि ।
इसके समय का, श. सं. ८१३ (वि. सं. १०२८ ई. स. १७१ ) का, एक लेखे मिला है । यह कनाडी भाषा में लिखा हुआ है । इसमें इसकी उपाधि, "नित्यवर्ष" लिखी है, और इसके सामन्त पश्चिमी गङ्गवंशी पेरमानडि मारसिंह द्वितीय का भी उल्लेख है । इस मारसिंह के अधिकार में गंगवाडी के १६ हजार (8), वेलवल के ३००, और पुरिगेर के ३०० गाँव थे ।
उदयपुर (ग्वालियर ) से, परमार राजा उदयादित्य के समय की, एक प्रशस्ति मिली है । उसमें लिखा है:
"श्रीहर्षदेव इति खोट्टिगदेवलक्ष्मी ।
जग्राह यो युधि नगादसमः प्रतापः [१२]" अर्थात्-श्रीहर्ष ( मालवा के परमार राजा सीयक द्वितीय ) ने खोडियदेव की राज्यलक्ष्मी छीन ली।
(१) यह इसके नाम का प्राकृतरूप मालूम होता है। पान्तु इसके असली नाम का
___ उल्लेख अब तक नहीं मिला है। (२) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भा० ११. पृ. २५५ (३) अनंत बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा॰, पृ. ५०
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