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मान्यखेट (दक्षिण) के राष्ट्रकूट
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धनपाल कवि ने अपने 'पाइयलच्छी नाममाला' नामक प्राकृतकोष के अन्त में लिखा है:
"विकमकालस्सगए, उणतीसुत्तरे सहस्सम्मि । मालवनरिंदधाडीए लूडिए मन्नखेड़म्म || २७६ ॥”
अर्थात् - विक्रम संवत् १०२९ में मालवे के राजा ने मान्यखेट को लूटा । इनसे प्रकट होता है कि, सीयक द्वितीय ने, खोट्टिग को हराकर उसकी राजधानी, मान्यखेट को लूटा था । इसी घटना के समय धनपाल ने, अपनी बहन सुन्दरा के लिए, पूर्वोक्त ( पाइयलच्छी नाममाला ) पुस्तक बनायी थी । इसी युद्ध में मालवे के राजा सीयक का चचेरा भाई ( बागड़ का राजा कङ्कदेव ) मारा गया था, और इसी में खोट्टिग का भी देहान्त हुआ था । यह बात पुष्पदन्त रचित 'जैनमहापुराण' से भी सिद्ध होती है ।
खोट्टिग का राज्यारोहण वि. सं. १०२३ ( ई. स. १६६ ) के करीब हुआ होगा ।
खोट्टिग के समय से ही दक्षिण के राष्ट्रकूट राजाओं का उदय होता हुआ प्रताप-सूर्य अस्ताचल की तरफ़ मुड़गया था । खोट्टिग के पीछे कोई पुत्र न था । १६ कर्कराज द्वितीय
यह अमोघवर्ष तृतीय के सब से छोटे पुत्र निरुपम का लड़का, और खोट्टिगदेव का भतीजा था; और अपने चाचा खोट्टिग के बाद राज्य का अधिकारी हुआ । इसके नाम के रूपान्तर - कक्क, कर्कर, कक्कर, और कक्कल आदि मिलते हैं । इसकी उपाधियां ये थीं :
अमोघवर्ष, नृपतुङ्ग, वीरनारायण, नूतनपार्थ, श्रहितमार्तण्ड, राजत्रिनेत्र, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, परमभट्टारक, पृथ्वीवल्लभ, और वल्लभनरेन्द्र आदि । इन में की “परममाहेश्वर" उपाधि से इसका भी शैव होना सिद्ध होता है।
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