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राष्ट्रकूटों का इतिहास इसके समय का, श. सं. ०१४ (वि. सं. १०२९ ई. स. १७२ ) का, एक ताम्रपत्रं करडा से मिला है । इसमें भी राष्ट्रकूटों को यदुववंशी लिखा है। कर्कराज की राजधानी मलखेड़ थी, और इसने गुर्जर, चोल, हूण, और पापड्य लोगों को जीता था।
गुणकूर ( धारवाड़ ) से, श. सं. २९६ (वि. सं. १०३० ई. स. १७३) का, एक लेख मिला है । यह भी इसी के समय का है । इसमें इसके सामन्त पश्चिमी गङ्गवंशी राजा पेरमानडि मारसिंह द्वितीय का उल्लेख है । इस मारसिंह ने पल्लववंशी नोलम्बकुल को नष्ट किया था । ____ कर्कराज : द्वितीय ) का राज्यभिषेक वि. सं. १०२६ ( ई. स. १७२ ) के करीब हुआ होगा। ___ पहले खोटिंग और मालवे के परमार राजा सीयक द्वितीय के युद्ध का उल्लेख किया जा चुका है। इस युद्ध के कारण ही इन राष्ट्रकूटों का राज्य शिथिल पड़गया था। इसी से चालुक्यवंशी ( सोलङ्की ) राजा तैलपै द्वितीय ने कर्कराज द्वितीय पर चढाई कर अपने पूर्वजों के गये हुए राज्य को वापिस हथिया लिया । इस प्रकार वि. सं. १०३० ( ई. स. १७३ ) के बाद कल्याणी
(1) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भाग, १२ पृ. २६३ (२) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भाग १२, पृ. २७१ (३) इस तेखप की पितामही राष्ट्रकूट कृष्णराज (द्वितीय) की कन्या थी, और उसका
विवाह चालुक्यवंशी भय्यन के साथ हुमा था। अय्यन का समय वि.सं. १७७ (इ. स. ११.) के करीब था ( इण्डियन ऐगिटक्केरी, भा. १६, पृ. १८और दि
कॉनॉलॉजी मॉफ इण्डिया, पृ.८६) (७) खारेपाटण से मिले ताम्रपत्र में लिखा है:
"ककलस्तस्य नातृव्यो भुवोभर्ता जनप्रियः ।
मासीत् प्रचण्डयामेव प्रतापजितशात्रवः ॥
समरे तं विनिनित्य तैलपोभून्महीपतिः ।" अर्यात्-खोहिग का भतीजा प्रतापी कर्कराज द्वितीय था । परन्तु तेहप ने, उसे हराकर, उसके राज्यपर अधिकार करलिया।
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