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मान्यखेट (दक्षिण) के राष्ट्रकूट
८५ देओली से मिली प्रशस्ति से प्रकट होता है कि, कृष्ण तृतीय ने कांची के राजा दन्तिग और वप्पुक को मारा; पल्लव-वंशी राजा अन्तिग को हराया; गुर्जरों के आक्रमण से मध्यभारत के कलचुरियों की रक्षा की; और इसी प्रकार
और भी अनेक शत्रुओं को जीता । हिमालय से लङ्का तक के, और पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र तक के सामन्त राजा इसकी आज्ञा में रहते थे । इसने अपने छोटे भाई जगत्तुङ्ग की सेवाओं का विचार कर, उसकी स्मृति में, एक गांव दान दिया था। इस राजा का प्रताप युवराज अवस्था में ही खूब फैलगया था । ____लक्ष्मेश्वर से मिली, श. सं. ८१ ० ( ई. स. १६८-६ ) की, प्रशस्ति में लिखा है कि, मारसिंह द्वितीय ने इसी ( कृष्ण तृतीय ) की आज्ञा से गुर्जर राजा को जीता था। यह ( कृष्ण ) स्वयं चोल-वंशी राजाओं के लिए कालरूप था ।
क्यासनूर और धारवाड़ से मिले लेखों से पता चलता है कि, इसका महासामन्त चैल्लकेतन-वंशी कलिविट्ट वि. सं. १००२-३ ( ई. स. १४५-४६ ) में बनवासी प्रदेश का शासक था।
__सौन्दत्ति के रट्टों के एक लेख में लिखा है कि, कृष्ण तृतीय ने पृथ्वीराम को महासामन्त के पद पर प्रतिष्ठित कर सौन्दत्ति के रट्ट-वंश को उन्नत किया था। सेउण प्रदेश का यादववंशी वन्दिग ( वद्दिग ) भी इस ( कृष्ण तृतीय ) का सामन्त था।
इसके समय के करीब १६ लेख, और २ ताम्रपत्र मिले हैं। इनमें के ७ लेखों और २ ताम्रपत्रों में शक संवत् लिखे हैं, और ८ लेखों में इसके राज्यवर्ष दिये हैं । उनका विवरण आगे दिया जाता है:
(१) इण्डियन ऐण्टिक्वेरी, भा० ५, पृ० १६१ (२) ये गुर्जर शयाद अनहिलवाड़े के चालुक्यवंशी राजा मूलराज के अनुयायी थे जिन्हों ने
कालिंजर, और चित्रकूट पर अधिकार करने का इरादा किया था। (३) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भा० ७, पृ० १०४ (४) बॉम्बे गजेटियर, भा० १, खण्ड २, पृ॰ ४२० (५) बॉम्बे गजेटियर, भा० १, खण्ड २, पृ० ५४२
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