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राष्ट्रकूटो का इतिहास __ हेब्बाल से मिले लेखं से पता चलता है कि, बदिग ( अमोघवर्ष तृतीय ) की कन्या का विवाह पश्चिमी गङ्ग-वंशी राजा सत्यवाक्य कोंगुणिवर्म पेरमानडि भूतुग द्वितीय से हुआ था, और उसे दहेज़ में बहुतसा प्रदेश दिया गया था । ___बदिग का राज्याभिषेक वि. सं. २२२ (ई. स. १३५ ) के निकट हुआ होगा।
इसके ४ पुत्र थे:-कृष्णराज, जगत्तुङ्ग, खोट्टिग, और निरुपम । बद्दिग की कन्या का नाम रेवकनिम्मड़ि था, और यह कृष्णराज तृतीय की बड़ी बहन थी।
१७ कृष्णराज तृतीय यह बदिग (अमोघवर्ष तृतीय ) का बड़ा पुत्र था, और उसके पीछे गद्दीपर बैठा । इसके नाम का प्राकृतरूप "कन्नर" लिखा मिलता है। इसकी आगे लिखी उपाधियां थीं:
अकालवर्ष, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परममाहेश्वर, परमभट्टारक, पृथ्वीवल्लभ, श्रीपृथ्वीवल्लभ, समस्तभुवनाश्रय, कन्धारपुरवराधीश्वर आदि । ____ आतकूर से मिले लेख से पता चलता है कि, कृष्णराज तृतीय ने, वि. सं. १००६-७ ( ई. स. १४९-५० ) के करीब, तक्कोल नामक स्थान पर, चोलवंशी राजा राजादित्य ( मूवडि चोल ) को युद्ध में मारा था । परन्तु वास्तव में इस चोल राजा को धोका देकर मारनेवाला पश्चिमी गङ्गवंशी राजा सत्यवाक्य कोंगुणिवर्मा परमानडि भूतुग ही था, और इसी से प्रसन्न होकर कृष्णराज तृतीय ने उसे बनवासी आदि प्रदेश दिये थे । ___ तिरुकलुकण्यम् से मिले लेख में कृष्णराज तृतीय का काञ्ची, और तंजोर पर अधिकार करना लिखा है ।
(१) ऐपियाफिया इगिडका, भाग ४, पृ. ३५१ (2) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा॰ २, पृ. ११ । राजादित्य की मृत्यु का समय वि•सं•
१.०६ (ई. स. ६४९) अनुमान किया जाता है। (३) ऐपिप्राफिया इहिका, भाग ३, पृ. २४
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