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मान्यखेट (दक्षिण) के राष्ट्रकूट
१६ बदिग (अमाधवर्ष तृतीय ) यह कृष्णराज द्वितीय का पौत्र, और जगत्तुङ्ग द्वितीय का ( गोविन्दाग्बा के गर्भ से उत्पन्न हुआ ) पुत्र था; और गोविन्द चतुर्थ के, विषयासक्ति के कारण, असमय में ही मरजाने पर उसका उत्तराधिकारी हुआ ।
राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज तृतीय के देअोली ( वरधा ) से मिले, श. सं. ८६२ ( वि. सं. १९७=ई. स. १४०) के, ताम्रपत्र में लिखा है :---
"राज्यं दधे मदनसौख्यविलासकन्दो- . गोविन्दराज इति विश्रुतनामधेयः ॥ १७ ॥ सोप्यङ्गनानयनपाशनिरुद्धबुद्धिसन्मार्गसंगविमुखीकृत सर्वसत्त्वः । दोषप्रकोपविषमप्रकृतिश्लथांगः । प्रापत्क्षयं सहजतेजसि जातजाइये ॥ सामन्तैरथ रहराज्यमहिलालम्बार्थमभ्यर्थितो देवेनापि पिनाकिना हरिकुलोलालैषिणा प्रेरितः । अध्यास्त प्रथमो विवेकिषु जगहुँगान्मजोमोधवा
पीयूषाधिरमोघवर्षनृपतिः श्रीवीरसिंहासनम् ॥ १६ ॥" अर्थात्-अमोघवर्ष द्वितीय के पीछे गोविन्दराज चतुर्थ राज्य का स्वामी हुआ । परन्तु जब काम-विलास में अत्यधिक आसक्त होने के कारण वह शीघ्र ही मरगया, तब उसके सामन्तों ने, रह राज्य की रक्षा के लिए, जगत्तुङ्ग के पुत्र अमोघवर्ष से राज्यभार ग्रहण करने की प्रार्थना की, और उसे गद्दीपर बिठाया ।
अमोघवर्ष चतुर्थ ( बदिग ) की निम्नलिखित उपाधियाँ मिलती हैं:श्रीपृथिवीवल्लभ, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक आदि ।
यह राजा बुद्धिमान् , वीर, और शिवभक्त था । इसका विवाह कलचुरि (हैहय वंशी) नरेश युवराज प्रथम की कन्या कुन्दकदेवी से हुआ था । यह युवराज त्रिपुरी ( तेंवर ) का रोजा था। (१) जर्नल बाँबे ब्रांच रायल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १८, पृ० २५१; और
ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ५, पृ. १६२ (२) भारत के प्राचीन राजवंश, भाग १, पृ० ४२
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