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मान्यखेट (दक्षिण) के राष्ट्रकूट
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शिलारवंशी महामण्डलेश्वर अपराजित देवराज का, श. सं. ११६ ( वि. सं. १०५४=ई. स. ११७ ) का, एक ताम्रपत्रे मिला है । इस से ज्ञात होता है कि, यह (अमोघवर्ष ) राज्य पर बैठने के थोड़े समय बाद ही मरगया था । इसलिए यदि इसने राज्य किया होगा तो अधिक से अधिक एक वर्ष के करीब ही किया होगा । इसका राज्यारोहण काल वि. सं. १७३ ( ई. स. ११६ ) के करीब होना चाहिए ।
देओली से मिले, श. सं. ८६२ ( ई. स. १४० ) के ताम्रपत्र से भी अमोघवर्ष द्वितीय का इन्द्रराज तृतीय के पीछे गद्दीपर बैठना प्रकट होता है । १५ गोविन्दराज चतुर्थ
यह इन्द्रराज तृतीय का पुत्र, और अमोघवर्ष द्वितीय का छोटा भाई था । इसके नाम का प्राकृत रूप " गोज्जिग" मिलता है । इसकी उपाधियाँ ये थीं :प्रभूतवर्ष, सुवर्णवर्ष, नृपतुङ्ग, वीरनारायण, नित्यकन्दर्प, रदृकन्दर्प, शशाङ्क, नृपतित्रिनेत्र, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक, साहसाङ्क, पृथिवीवल्लभ, बल्लभनरेन्द्रदेव, विक्रान्तनारायण, और गोज्जिगवल्लभ आदि ।
इसके समय वेङ्गि के पूर्वी चालुक्यों के साथ का झगड़ा फिर छिड़गया था । अम्म प्रथम, और भीम तृतीय के लेखों से भी इस बात की पुष्टि होती है ।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ३, पृ० २७१
( २ ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा०५, पृ० १४२
(३) चालुक्यों के ताम्रपत्रों में भीम तृतीय के विषय में लिखा है:
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" दण्डं गोविन्दराज प्रणिहितमधिकं चोलप लोल विक्किं
विक्रान्तं युद्धमलं घटित गजघटं संनिहत्यैक एव ।
"
अर्थात् भीमने, अकेले ही, गोविन्दराज की सेना को, चोलवंशी लोलविधि को, और हाथियों की सेनावाले युद्धमल्ल को मारकर
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इस से ज्ञात होता है कि, गोविन्द चतुर्थ ने भीम पर चढ़ायी की थी। परन्तु उसमें उसे सफलता नहीं हुई ।
इस ( गोविन्द चतुर्थ ) ने ग्रम्म प्रथम के राज्याभिषेक के समय उस पर भी चढ़ायी की थी। परन्तु उसमें भी इसे असफल होना पड़ा ।
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