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राष्ट्रकूटों का इतिहास उपर्युक्त दोनों दानपत्रों में राष्ट्रकूटों का सात्यकि के वंश में होना, और इस इन्द्रराज का मेरु को उजाड़ना लिखा है । यहां पर मेरु से महोदय (कन्नौज) का ही तात्पर्य होगा; क्योंकि इसके पुत्र गोविंद चतुर्थ के, श. सं. ८५२ के, दानपत्र से भी प्रकट होता है कि, इसने अपने रिसाले के साथ यमुना को पारकर कन्नौज को उजाड़ दिया था, और इसी से उसका नाम "कुशस्थल" होगया था।
हत्तिमत्तूर ( धारवाड़ जिले ) से, श. सं. ८३८ ( वि. सं. १७३ ई. स. ११६) का, एक लेखं मिला है । इस में इस ( इन्द्रराज तृतीय ) के महासामन्त लेण्डेयरस का उल्लेख है।
जिस समय इन्द्रराज तृतीयने मेरु ( महोदय कन्नौज ) को उजाड़ा था, उस समय वहां पर पड़िहार राजा महीपाल का राज्य था । यद्यपि इन्द्रराज ने वहां पहुँच उसका राज्य छीन लिया, तथापि वह ( महीपाल ) फिर कन्नौज का स्वामी बनबैठा । परन्तु इस गड़बड़ में उस ( पांचालदेश के राजा महीपाल ) के हाथ से राज्य के सौराष्ट्र आदि पश्चिमी प्रदेश निकल गये । ___ 'दमयन्तीकथा' और 'मदालसा चम्पू' का लेखक त्रिविक्रम भट्ट भी इन्द्रराज तृतीय के समय हुआ था, और श. सं. ८३६ ( वि. सं. १७२ ) का कुरुन्दक से मिला दानपत्र भी इसी त्रिविक्रम भट्टने लिखा था। इसके पिता का नाम नेमादित्य और पुत्र का नाम भास्कर भट्ट था । यह भास्करभट्ट मालवा के परमार राजा भोज का समकालीन था, और इसी की पांचवीं पीढी में 'सिद्धांतशिरोमणि' का कर्ता प्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्य हुआ था। इन्द्रराज तृतीय के दो पुत्र थे:- अमोघवर्ष, और गोविन्दराज ।
१४ अमोघवर्ष द्वितीय यह इन्द्रराज तृतीय का बड़ा पुत्र था, और सम्भवतः उसके पीछे राज्य का अधिकारी हुआ।
(1) इण्डियन ऐपिठक्केरी, भा• १२, पृ. २१४
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