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मान्यखेट ( दक्षिण ) के राष्ट्रकूट
७६ (इस ताम्रपत्र से यह भी ज्ञात होता है कि, जगत्तुङ्ग ने कई प्रदेशों को जीत कर पिता के राज्य की वृद्धि की थी। परन्तु इस ताम्रपत्र में दिये पिछले इतिहास में बड़ी गड़बड़ है।)
१३ इन्द्रराज तृतीय ___ यह जगस्तुङ्ग द्वितीय का पुत्र था, और पिता के कुमारावस्था में मरजाने के कारण ही अपने दादा कृष्णराज द्वितीय का उत्तराधिकारी हुआ । इसकी माता का नाम लक्ष्मी था । इन्द्रराज तृतीय का विवाह कलचुरी ( हैहय कोकल के पौत्र ) अर्जुन के पुत्र अम्मणदेव (अनङ्गदेव ) की कन्या वीजाम्बा से हुआ था। इसकी आगे लिखी उपाधियां मिलती हैं:
नित्यवर्ष, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक, और श्रीपृथिवीवल्लभ ।
बगुम्रा से इसके समय के दो ताम्रपत्रं मिले हैं । ये दोनों श. सं. ८३६ (वि. सं. १७२ ई. स. ११५ ) के हैं । इनसे प्रकट होता है कि, इसने मान्यखेट से कुरुन्दक नामक स्थान में जाकर अपना “राज्याभिषेकोत्सव" किया था, और श. सं. ८३६ की फाल्गुन शुक्ल ७ (२४ फरवरी सेन् ११५ ) को उस कार्य के पूर्ण होजाने पर सुवर्ण का तुलादान कर लाट देश में का एक गाँव दान दिया था । (यह कुरुन्दक कृष्णा और पंचगंगा नदियों के संगम पर था।) इसके साथ ही इसने अगले राजाओं के दिये वे ४०० गाँव, जो जब्त हो चुके थे, बीस लाख द्रम्मों सहित फिर दान करदिये थे।
(1) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. १ पृ. २६; जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भा.
१८, पृ. २१७ और २६१ (२) मि. विन्सैटस्मिथ इन्द्र तृतीय का राज्यारोहण ई. स. १२ में लिखते हैं। नहीं कह सकते कि, यह कहां तक ठीक है ? क्योंकि इसी ताम्रपत्र में लिखा है:--
"शकनृपकालातीतसंवत्सर [शते] ध्वष्टसु षट्त्रिंशदुत्तरेषु
युवसंवत्सरे फाल्गुनशुद्धसप्तम्यां संपमे श्रीपट्टव (ब) धोत्सवे ।" इसते इस घटना का ई.स. १५ में होना सिद्ध होता है।
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