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राष्ट्रकूटों का इतिहास कृष्णराज का राज्यारोहण श. सं. ७९७ (वि. सं. १३२ ई. स. ८७५ ) के करीब अनुमान किया जाता है । परन्तु मिस्टर वी. ए. स्मिथ इस घटना का समय ई. स. ८८० (वि. सं १३७ ) मानते हैं। इसका देहान्त श. सं. ८३३ (वि. सं. १६१ ई. स. १११) के निकट हुआ होगा।
कृष्णराज द्वितीय के पुत्र का नाम जगत्तुङ्ग द्वितीय था । उसका विवाह, चेदिके कलचुरी (हैहयवंशी) राजा कोकल के पुत्र, रणविग्रह ( शक्करगण ) की कन्या लक्ष्मी से हुआ था। ___ जिस प्रकार अर्जुन का विवाह अपने मामू वसुदेव की कन्या से, प्रद्युम्न का रुक्म की पुत्री से, और अनिरुद्ध का रुक्म की पौत्री से हुआ था, उसी प्रकार दक्षिण के राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज, जगत्तुङ्ग आदि का विवाह अपने मामुओं की लड़कियों के साथ हुआ था । यह प्रथा दक्षिण में अबतक भी प्रचलित है । परन्तु उत्तर में त्याज्य समझी जाती है। ___वर्धा से मिले दानपत्र से प्रकट होता है कि, यह जगत्तुङ्ग अपने पिता (कृष्ण द्वितीय) के जीतेजी ही मरगया था, इसीसे कृष्णराज के पीछे जगत्तुङ्ग का पुत्र इन्द्र राज्य का स्वामी हुआ। ___ करड़ा के दानपत्र में जगत्तुङ्ग द्वितीय का शङ्करेंगण की कन्या लक्ष्मी से विवाह करना लिखा है । परन्तु उसी से इसका शङ्करगण की दूसरी कन्या गोविन्दाम्बा से विवाह करना भी प्रकट होता है । इसी गोविन्दाम्बा से अमोघवर्ष तृतीय (वदिग) का जन्म हुआ था । शायद यह इन्द्रराज का छोटा भाई हो। (१) कृष्णराज की कन्या का विवाह चालुक्य (सोलंकी) भीम के पुत्र अय्यण से हुमा था।
उसीका पौत्र तैलप द्वितीय या । ( इण्डियन ऐगिटक्केरी, भा. १६ पृ. १८) (२) "प्रभूज्जगतुङ्ग इति प्रसिद्धस्तदंगजः स्त्रीनयनामृतांशुः ।
मलब्धराज्यः स दिवं विनिन्ये दिव्यांगनाप्रार्थनयेव धात्रा ।" अर्थात्-रूपवान् जगत्तुङ्ग कामक्रीडासक होकर कुमारावस्था में ही मरगया।
यही बात सांगली, और नवसारी के ताम्रपत्रों से भी प्रकट होती है। (३) शायद शङ्करगण की उपाधि रणविग्रह थी। (४) करडा से मिले ताम्रपत्र में लिखा है:
"चेद्यां मातुलशंकरगणात्मजायामभूबगतुंगात् । श्रीमानमोघवर्षों गोविन्दाम्बाभिधानायाम् ॥"
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