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राष्ट्रकूटों का इतिहास प्रथम से कृष्ण द्वितीय तक की वंशावली देकर कृष्ण द्वितीय द्वारा दिये गाँव के दान का उल्लेख किया गया है । इसी में इसके महासामन्त ब्रह्मबक वंशी प्रचण्ड का नाम भी लिखा है; जिसके अधिकार में ७५० गाँव थे, और इन में खेटक, हर्षपुर, और कासहद मुख्य समझे जाते थे।
__चौथा, एहोले (बीजापुर ) से मिला, लेखे श. सं. ८३१ (वि. सं. १६६ ई. स. १०९) का है। इसका वास्तविक संवत् श. सं.८३३ (वि. सं. १६८ ई. स. ९१२) माना जाता है।
कृष्णराज द्वितीय की आगे लिखी उपाधियाँ मिली हैं:- अकालवर्ष, शुभतुङ्ग, महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक, श्रीपृथ्वीवल्लभ, और वल्लभराज ।
किसी किसी स्थान पर इसके नाम के साथ " वल्लभ" भी जुड़ा मिलता है; जैसे-कृष्णवल्लभ । इसके नाम का कनाड़ी रूप “कन्नर" पाया जाता है ।
इसने चेदि के हैहयवंशी राजा कोक्कल की कन्या महादेवी से विवाह किया था; जो शंकुक की छोटी बहन थी। कोक्कल प्रथम त्रिपुरी ( तेंवर ) का राजा थौं ।
कृष्णराज (द्वितीय) के समय भी पूर्वी चालुक्यों के साथ का युद्ध जारी था।
(१) कृष्णराज ने प्रचण्ड के पिता की सेवा से प्रसन्न होकर उसे ( प्रचण्ड के पिता को)
पुजरात में जागीर दी थी। (२) इण्डियन ऐण्टिक्केरी, भाग १२, पृ. २२२ (३) भारत के प्राचीन राजवंश, भाग १, पृ. ४० (४) वेंगि देश के राजा चालुक्य भीम द्वितीय के ताम्रपत्र में लिखा है:
"तत्सूनुमगिहननकृष्णपुरदहने विख्यातकीर्तिगुणगविजयादित्यश्चतुश्चत्वारिंशतम्" अर्थात्-मंगि को मारने, और कृष्णराज द्वितीय के नगर को जलाने वाले (विष्णुवर्धन पञ्चम के
पुत्र गंगवशी ) विजयादित्य तृतीय ने ४४ वर्ष तक राज्य किया। इसके बाद सम्भवतः उसके राज्य पर राष्ट्रकूटों का अधिकार होगया । परन्तु बादमें विजयादित्य के भतीजे भीम प्रथम ने उस पर फिर कब्ज़ा करलिया । (इण्डियन ऐगिटक्केरी भा. १३,पृ. २१३)
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