________________
७४
राष्ट्रकूटों का इतिहास दिगम्बर जैनाचार्यों के मतानुसार अमोघवर्ष ने, वृद्धावस्था में वैराग्य के कारण राज्य छोड़ देने पर, 'प्रश्नोत्तररत्नमालिका' नामक पुस्तक लिखी थी। परंतु ब्राह्मण लोग इसे शंकराचार्य की लिखी, और श्वेताम्बर जैन इसे विमलाचार्य की बनायी मानते हैं । दिगम्बर-जैन-भंडारों से मिली इस पुस्तक की प्रतियों में निम्नलिखित श्लोक मिलता है:
"विवेकात्यतराज्येन राक्षेयं रत्नमालिका ।
रचितामोघवर्षेण सुधियां सदलंकृतिः ॥" अर्थात्-ज्ञानोदय के कारण राज्य छोड़ देनेवाले राजा अमोघवर्ष ने यह 'रत्नमालिका' नामकी पुस्तक लिखी।
इससे जाना जाता है कि, यह राजा वृद्धवस्था में राज्य का भार अपने पुत्र को सौंप धार्मिक कार्यों में लग गया था।
इस 'रत्नमालिका' का अनुवाद तिब्बती भाषा में भी किया गया था, और उसमें भी इसे अमोघवर्ष की बनायी ही लिखा है। ___ अमोघवर्ष के राज्य-काल के आसपास और भी अनेक जैनग्रंथ लिखेगये
थे, और इस मत का प्रचार बढ़ने लगा था । ___वंकेयरस का, विना संवत् का, एक लेखें मिला है। इससे ज्ञात होता है कि, यह वंकेयरस अमोघवर्ष का सामन्त और बनवासी, बेलगलि, कुण्डरगे, कुण्डूर, और पुरीगेडे ( लक्ष्मेश्वर ) आदि प्रदेशों का शासक था।
क्यासनूर से मिले, विना संवत् के, लेख से प्रकट होता है कि, अमोघवर्ष का सामन्त संकरगण्ड बनवासी का अधिकारी था
(१) मद्रास को, गवर्नमेंन्ट मौरियण्टल मैन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी की 'प्रश्नोत्तरमाला' की कापी
में भी उसे शङ्कराचार्य की बनायी ही लिखा है । ( कुप्पुस्वामी द्वारा संपादित सूची,
भा॰ २, खण्ड 1, 'सी, पृ. २६४०-२६४१ (२) प्रमोघवर्ष के एक पुत्र का नाम कृष्णाज, और दूसरे का दुय था। (स्मियकी
___ 'भी हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृ० ४४६, फुटनोट १) (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ५, पृ० २१२ (1) साउयइण्डियन इन्सक्रिपशन्स, भा॰ २, • ७, पृ. १६२
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com