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मान्यखेट (दक्षिण) के राष्ट्रकूट सुंडी से, पश्चिमी-गंगवंशी राजा का, एक दानपत्रं मिला है । उससे प्रकट होता है कि, अमोववर्ष की कन्या अब्बलब्बा का विवाह गुणदत्तरंग भूतुग से हुआ था । यह भूतुग, राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय के सामन्त, पेरमानड़ि भूतुग का प्रपितामह (परदादा ) था। परंतु विद्वान् लोग इस दानपत्र को बनावटी मानते हैं।
पूर्वोक्त श. सं. ७८८ के लेख के अनुसार अमोघवर्ष का राज्यारोहणसमय श. सं. ७३६ (वि. सं. ८७१ ई. स. ८१५) के करीब आता है। गुणभद्रसूरि कृत 'उत्तरपुराण' ( महापुराण के उत्तरार्ध ) में लिखा है:
“यस्थ प्रांशुनखांशुजालविसरद्धारान्तराविर्भवत्पादाम्भोजरजःपिशङ्गमुकुटप्रत्यग्ररत्नयुतिः । संस्मर्ता स्वममोघवर्षनृपतिः पूतोहमद्येत्यलं
स श्रीप्राजिनसेनपूज्यभगवत्पादो जगन्मङ्गलम् ॥" अर्थात्-वह जिन सेनाचार्य, जिनको प्रणाम करने से राजा अमोघवर्ष अपने को पवित्र समझता है, जगत् के मंगलरूप हैं। ___ इससे ज्ञात होता है कि, यह राजा दिगम्बर जैनमत का अनुयायी, और जिनसेने का शिष्य था । जिनसेन रचित 'पार्थाभ्युदय काव्य' से भी इस बात की पुष्टि होती है । इसी जिनसेन ने 'आदिपुराण' ( महापुराण के पूर्वार्ध) की रचना की थी। महावीराचार्य रचित 'गणितसारसंग्रह' नामक गणित के ग्रंथ की भूमिका में भी अमोघवर्ष को जैनमतानुयायी लिखा है ।
दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की 'जयधवला' नामक सिद्धान्त टीका भी, श. सं. ७५६ (वि. सं. ०१४-ई. स. ८३७) में, इसीके राज्य समय लिखी गयी थी।
(१) ऐपिग्राफिया इगिडका, भाग ३, पृ. १७६. (२) पाश्र्वाभ्युदय' और 'मादिपुराण' का कर्ता जिनसेन सेन संघका था, और 'हरिवंश
पुराण' (श. सं. ७०५ ) का कर्ता जिनसेन पुन्नाट संघ का (माचार्य ) था । (३) "इत्यमोघवर्षपरमेश्वरपामगुरुत्रीजिनसेनाचार्यविरचिते मेषतवेष्टिते पारर्वाभ्युदये
भगवत्कैवल्यवर्णनं नाम चतुर्थःसर्गः।"
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