________________
मान्यखेट ( दक्षिण ) के राष्ट्रकूट चौथा, मंत्रवाड़ी से मिला, श. सं. ७८७ ( वि. सं. १२२=ई. स. ८६५ ) का लेख है।
पांचवां, शिरूर से मिला, श. सं. ७८८ ( वि. सं. १२३=ई. स. ८६६ ) का; और छठा, नीलगुण्ड से मिला, इसी संवत् का लेख है । ये इस के ५२ वें राज्य वर्ष के हैं।
शिरूर के लेख से ज्ञात होता है कि, इस का राज-चिह्न गरुड़ था, और यह "लटलूराधीश्वर" कहाता था । अङ्ग, बङ्ग, मगध, मालवा, और वेङ्गि के राजा इसकी सेवा में रहते थे। ( सम्भव है इसमें कुछ अत्युक्ति भी हो)
सातवां, इसके सामन्त बंकेवरस का, निडगुंडि से मिला लेख है । यह इस (अमोघवर्ष ) के ६१ वें राज्य वर्ष का है। ___ इस के समय के चौथे, संजान से मिले, श. सं. ७६३ (वि. सं. १२८=ई. स. ८७१) के, अमुद्रित ताम्रपत्र में लिखा है कि, इसने द्रविड नरेशों को नष्ट करने के लिए बड़ा प्रयत्न किया था, और इसकी चढ़ाई से केरल, पाण्डय, चोल, कलिंग, मगध, गुजरात, और पल्लव नरेश डरजाते थे। इसने गंगवंशी राजा को,
और उसके षड्यंत्र में सम्मिलित हुए अपने नौकरों को आजन्म कारावास का दण्ड दिया था। इसके बगीचे के इर्दगिर्द की दीवार स्वयं वेंगि के राजा ने बनवायी थी।
पांचवां, गुजरात के स्वामी महासामन्ताधिपति ध्रुवराज द्वितीय का, श. सं. ७८९ (वि. सं. १२४ ई. स. ८६७ ) का ताम्रपत्रं है। इस में उस (ध्रुवराज द्वितीय ) के दिये दान का वर्णन है।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ७, पृ. १६८ (२) इण्डियन ऐनिटक्केरी, भा. १२, पृ. २१८; ऐपिग्राफिया इगिडका, भा. ५, पृ. २०३ (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ६, पृ. १०२ । (४) इस से ज्ञात होता है कि, यह राजा वैष्णवमत का अनुयायी था। (५) ऐपिग्राफिया इगिडका, भा. ७, पृ. २१२ (६) परन्तु अन्त में जब वेङ्गि के राजा ने अपनी प्रजा को दुःख देना प्रारम्भ किया, तब
अमोघवर्ष ने, उसको और उसके मंत्री को कैद कर कांची के शिवालय में (कीर्तिस्तम्भ
के समान ) उनकी मूर्तियां स्थापित करवायी थीं। (७) शायद इस ध्रुवराज द्वितीय के, और अमोघवर्ष प्रथम के बीच भी युद्ध हुमा या। (८) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भा० १२, पृ० १८१
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com