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मान्यख्नेट (दक्षिण ) के राष्ट्रकूट नृपतुङ्ग, महाराजशर्व, महाराजशण्ड, अतिशयधवल, वीरनारायण, पृथ्वीवल्लभ, श्रीपृथिवीवल्लभ, लक्ष्मीवल्लभ, महाराजाधिराज, भटार, परमभट्टारक, प्रभूतवर्ष, और जगत्तुङ्ग ।
इस राजा के पास आगे लिखी सात वस्तुऐं राज-चिह्न स्वरूप थीं:
तीन श्वेतछत्र, एक शंख, एक पालिध्वज, एक ओककेतु, और एक टिविली ( त्रिवली)।
इनमें के तीनों श्वेतछत्र गोविन्दराज द्वितीय ने शत्रुओं से छीने थे । अमोघवर्ष के समय के दानपत्रों, और लेखों का वर्णन आगे दिया जाता
इसके समय का पहला, गुजरात के राष्ट्रकूट राजा कर्कराज का, बड़ौदा से मिला, श. सं. ७३८ (वि. सं. ८७३ ई. स. ८१७) का ताम्रपत्र है। यह कर्कराज अमोघवर्ष का चचेरा भाई था ।
दूसरा, कावी ( भडोच जिले ) से मिला, श. स, ७४६ (वि. सं. ८८४ =ई. स. ८२७ ) का दानपत्रं है। इसमें गुजरात के राष्ट्रकूट राजा गोविन्दराज के दिये दान का उल्लेख है।
तीसरा, बड़ौदा से मिला, श. सं. ७५७ (.वि. सं. ८१२ ई. स.८३५)' का ताम्रपत्र है । यह गुजरात के राजा महासामन्ताधिपति राष्ट्रकूट ध्रुवराजे प्रथम का है । इससे प्रकट होता है कि, अमोघवर्ष के चचा का नाम इन्द्रराज था, और उसके पुत्र (अमोघवर्ष के चचेरे भाई) कर्कराज ने, बागी राष्ट्रकूटों से युद्ध कर, अमोघवर्ष को राज्य दिलवाया था। ____ इसके समय का पहला, कन्हेरी ( थाना जिले ) की गुफा में का, श. सं.७६५ (वि. सं. १०० ई. स. ८४३) का लेख है । इससे ज्ञात होता है कि, उस समय
(१) जर्नल बांबे ब्रांच एशियाटिक सोसाइटी, भाग २०, पृ. १३६ (२) इण्डियन ऐगिटक्केरी, भाग ५, पृ. १४४ (३) इण्डियन ऐगिटकेरी, भाग १४, पृ. १६६ (४) कुछ विद्वानों का अनुमान है कि, लाट के राजा इसी ध्रुवराज प्रथम ने अमोघवर्ष के
विरुद्ध बगावत की थी। परन्तु अमोघवर्ष के चढाई करने पर यह युद्ध में मारा गया। (५) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भा. १३, पृ. १३६
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