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मान्यखेट (दक्षिण ) के राष्ट्रकूट राज्य का सारा भार अपने छोटे भाई निरुपम को सौंप रक्खा था । सम्भव है इसीसे इसके हाथ से राज्याधिकार छिन गया हो । ___ पैठन से मिले ताम्रपत्र से प्रकट होता है कि, गोविन्दराज द्वितीय ने अपने पड़ोसी मालव, कांची, और वेंगि आदि देशों के राजाओं की सहायता से एकवार फिर अपने गये हुए राज्य पर अधिकार करने की चेष्टा की थी। परन्तु निरुपम (ध्रुवराज ) ने इसे हराकर इसके राज्य पर पूर्णरूप से अधिकार करलिया।
दिगम्बर जैन संप्रदाय के प्राचार्य जिनसेन ने अपने बनाये 'हरिवंशपुराण' के अन्त में लिखा है:
"शाकेष्वन्दशतेषु सप्तसु दिशं पञ्चोत्तरेषत्तरां पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्णनृपजे श्रीवल्लभे दत्तिणाम् । पूर्वी श्रीमदवन्तिभूभृति नृपे वत्सादि(घि)राजेऽपरां
सोर्या (ग) णामधिमण्डले (लं ) जययुते वीरे वराहेऽवति ॥" अर्थात्-जिस समय, श. सं. ७०५ (वि. सं. ८४० ई. स. ७८३ ) में, उक्त पुराण बना था, उस समय उत्तर में इन्द्रायुधैं का, दक्षिण में कृष्ण के पुत्र श्रीवल्लभ का, पूर्व में अवन्ति के राजा वत्सराज का, और पश्चिम में वराह का राज्य था ।
(१) गोविन्दराज इति तस्य बभूव नाना
सूनुः स भोगभरभंगुरराज्यचिन्तः। मात्मानुजे निरुपमे विनिवेश्य सम्यक
साम्राज्यमीश्वरपदं शिथिलीचकार ॥" अर्थात् कृष्णराज प्रथम के पुत्र गोविन्दराज द्वितीय ने, भोग विलास में फँसकर, राज्य का कार्य अपने छोटे भाई निरुपम को सौंप दिया था। इसीस उसका प्रभुत्व शिथिल हो गया।
(२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा. ४, पृ. १०७ । (३) कुछ विद्वान् इन्द्रायुध को राष्ट्रकूटवंशी और कन्नौज का राजा मानते हैं। प्रतिहार
वत्सराज के पुत्र नागभट द्वितीय ने इसीके उत्तराधिकारी चक्रायुध को हराकर कन्नौज पर अधिकार करलिया था।
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