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राष्ट्रकूटों का इतिहास
८ गोविन्दराज द्वितीय यह कृष्णराज प्रथम का पुत्र, और उत्तराधिकारी था। इसके, पूर्वोक्त श, सं. ६९२ ( वि. सं. ८२७ ई. स. ७७० ) के, ताम्रपत्र से प्रकट होता है कि, इसने गि (गोदावरी और कृष्णा नदियोंके बीच के पूर्वी समुद्र तट के देश) को जीताथा । उस ताम्रपत्र में इसे युवराज लिखा है । इस से सिद्ध होता है कि, उस समय तक इस का पिता ( कृष्णराज प्रथम ) जीवत था। ___इसके समय के दो दानपत्र और भी मिले हैं। इनमें का पहला, श० सं० ६९७ (वि० सं० ८३२ ई० स० ७७५ ) का है। इसमें इसके छोटे भाई ध्रुवराज के नाम के साथ महाराजाधिराज आदि उपाधियां लगी हैं।
दूसरा श. सं. ७०१ (वि. सं. ८३६ ई. स. ७७९) का है । इससे उस समय तक मी गोविन्दराज का ही राजा होना प्रकट होता है; और इसमें ध्रुवराज के पुत्र का नाम कर्कराज लिखा है । परन्तु इन दोनों दानपत्रों से ज्ञात होता है कि, उन दिनों गोविन्दराज नाममात्र का राजा ही था । ___ वाणी-डिंडोरी, बड़ोदा, और राधनपुर से मिले दानपत्रों में गोविन्दराज का नाम न होने से अनुमान होता है कि, सम्भवतः शीघ्रही इसके छोटे भाई ध्रुवराज ने इसके राज्य पर अधिकार करलिया था । वर्धा के ताम्रपत्र से प्रकट होता है कि, इस (गोविन्दराज द्वितीय) ने, भोग विलास में अधिक प्रीति होने से,
(१) ऐपिग्राफ़िया इण्डिका, भा. ६, पृ. २०६ ( २ ) इसने यह विजय युवराज अवस्था में ही प्राप्त की थी। जिस समय इसका शिविर
कृष्णा, वेणः, और मुसी नदियों के संगम पर था, उसी समय बेगि-नरेरा ने वहाँ
पहुंच इसकी अधीनता स्वीकार की थी। ! ३) ऐपिप्राफिया इण्डिका, भा. १०, पृ. ८६ (0) ऐपिनाफिया इण्डिका, भा. ८, पृ. १८४
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