________________
मान्यखे (दक्षिण) के राष्ट्रकुट
५६
कृष्णराज का राज्यारोहण वि. सं. ८१७ ( ई. स. ७६० ) के करीब हुआ होगा ।
इसके दो पुत्र थे : --गोविन्दराज, और ध्रुवराज ।
कुछ
लोग हलायुध रचित 'कविरहस्य' के नायक राष्ट्रकूट कृष्ण से इसी कृष्ण प्रथम का तात्पर्य लेते हैं; और कुछ लोग उसे कृष्ण तृतीय मानते हैं । वास्तव में यह पिछला मत ही ठीक प्रतीत होता है । 'कविरहस्य' में लिखा है :अस्त्यगस्त्यमुनिज्योत्स्नापवित्रे दक्षिणापथे । कृष्णराज इति ख्यातो राजा साम्राज्यदीक्षितः ॥
*
कस्तं तुलयति स्थाम्ना राष्ट्रकूटकुलोद्भवम् ।
*
———
*
सोम सुनोति यज्ञेषु सोमवंशविभूषणः । पुरः सुवति संग्रामे स्यन्दनं स्वयमेव सः ॥
अर्थात् - दक्षिण भारत में कृष्णराज नाम का बड़ा प्रतापी राजा है ।
*
77
-
*
*
उस राष्ट्रकूट राजा की बराबरी कोई नहीं कर सकता ।
*
*
वह चंद्रवंशी राजा अनेक यज्ञ करता रहता है, और युद्ध में अपना रथ
*
सत्र से आगे रखता है ।
'राजवार्तिक' आदि ग्रन्थों का कर्ता प्रसिद्ध जैन- तार्किक प्रकलङ्क भट्ट इसी कृष्णराज प्रथम समय हुआ था ।
चांदी के सिक्के
धमोरी ( अमरावती ताल्लुके) से राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज के, करीब १८००, चांदी के सिक्के मिले हैं। ये क्षत्रपों के सिक्कों से मिलते हुए हैं । इनका आकार प्रचलित चांदी की दुन्नी के बराबर है । परन्तु मुटाई दुन्नी से दुगनी के करीब है । इन पर एक तरफ़ राजा का गर्दन तक का चित्र बना है, और दूसरी तरफ़ “परममाहेश्वर माहादित्यपादानुध्यात श्रीकृष्णराज” लिखा है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
( १ ) इस मत के अनुयायी 'कविरहस्य' का रचना काल वि० सं० ८६७ ( ई० स० ८१० ) के करीब मानते हैं ।
www.umaragyanbhandar.com