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राष्ट्रकूटों का इतिहास कृष्णराज की निम्नलिखित उपाधियां मिलती हैं:
अकालवर्ष, शुभतुङ्ग, पृथ्वीवल्लभ, और श्रीवल्लभ । इसने बलदर्पित गहप्पं को भी हराया था । ___मि० विन्सैण्टस्मिथ आदि विद्वानों का अनुमान है कि, इस (कृष्ण प्रथम) ने अपने भतीजे दन्तिदुर्ग (द्वितीय) को गद्दी से हटाकर उसके राज्य पर अधिकार करलिया था । परन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता; क्योंकि कावी और नवसारी से मिले दानपत्रों में "तस्मिन्दिवंगते" (अर्थात्-दन्तिदुर्ग के स्वर्ग जाने पर) लिखा होने से इसका अपने भतीजे ( दन्तिदुर्ग ) के मरने पर ही गद्दी पर बैठना प्रकट होता है। ____ बड़ोदा से मिले पूर्वोक्त ताम्रपत्र से यहभी प्रकट होता है कि, कृष्णराज के समय इसी राष्ट्रकूट वंश के एक राजपुत्र ने राज्य पर अधिकार करने का प्रयत्न किया था । परंतु कृष्णराज ने उसे दबादियों । सम्भव है वह राजपुत्र दन्तिदुर्ग द्वितीय का पुत्र हो, और उसके निर्बल या छोटे होने के कारण ही कृष्णराज ने राज्य पर अधिकार करलिया हो। ___ यद्यपि कर्कराज के, करडौँ से मिले (श. सं. ८१४ के ) दानपत्र में स्पष्ट तौर से लिखा है कि, दन्तिदुर्ग के अपुत्र मरने परही उसका चचा कृष्णराज उसका उत्तराधिकारी हुआ था, तथापि उस दानपत्र के उक्त घटना से २०० वर्ष बाद लिखे जाने के कारण उस पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं किया जासकता। (१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ३, पृ० १०५ । कुछ विद्वान् लाट (गुजरात) नरेश
कर्कराज द्वितीय का ही दूसरा नाम राहप्प अनुमान करते हैं । सम्भव है इसी युद्ध
के कारण गुजरात के राष्ट्रकूटों की उस शाखा की समाप्ति हुई हो। (२) मॉक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृ. २१६ ।। (३) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भा० ५, पृ० १४६; और जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी,
भा० १८, पृ० २५७। (1) जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा०८, पृ. २६२-२६३ । (५) “यो वंश्यमुन्मूल्य विमार्गभाजं राज्यं स्वयं गोत्रहिताय चक्रे । 'कुछ लोग इस
घटना से जाट (गुजरात ) के राजा कर्कराज द्वितीय से राज्य छीनने का तात्पर्य
लेते हैं । सम्भव है दन्तिवर्मा द्वितीय के बाद उसने कुछ गड़बड़ मचायी हो । (६) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भा० १२. पृ. २६४
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