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राष्ट्रकूटों का इतिहास पूर्वोक्त दशवतार के लेख में दन्तिदुर्ग का संधुभूपाधिप को जीतना भी लिखा है । यह दक्षिण में काञ्ची के पास का ही कोई राजा होगा; क्योंकि लेख में इसके बाद ही कांची का उल्लेख है ।
७ कृष्णाराज प्रथम
यह इन्द्रराज द्वितीय का छोटा भाई, और दन्तिदुर्ग का चचा था; तथा दन्तिदुर्ग के पीछे उसके राज्य का अधिकारी हुआ ।
इसके समय के तीन शिलालेख, और एक ताम्रपत्र मिला है:
पहला विना संवत् का लेख हत्तिमत्तूर से; दूसरा, श. सं. ६६० (वि. सं. ८२५ ई. स ७६८) का, लेख तलेगांव से; और तीसरा, श. सं. ६९२ (वि. सं. ८२७ ई. स. ७७०) का, लेख आलासे से मिला है।
इसके समय का ताम्रपत्र श. सं. ६९४ ( वि. सं. ८२९ ई. स. ७७२ ) का है। ____ वाणी गांव (नासिक) से, श. सं. ७३० (वि. सं. ८६४ ई. स. ८०७) का, एक ताम्रपत्र मिला है । यह राष्ट्रकूट राजा गोविन्दराज तृतीय का है । इसमें कृष्णराज के विषय में लिखा है:
“यश्चालुक्यकुलादनूनविवुधवाताश्रयो वारिधे
लक्ष्मीम्मन्दरवत्सलीलमचिरादाकृष्टवान् वल्लभः ॥" अर्थात् समुद्र मथन के समय, जिस प्रकार मन्दराचल पर्वत ने लक्ष्मी को समुद्र से बाहर खींच लिया था, उसी प्रकार वल्लभ (कृष्णराज प्रयम) ने भी लक्ष्मीको चालुक्य (सोलङ्की) वंश से खींच लिया ।
(1) ऐपिग्राफिया इगिडका, भा० ६, पृ. १६१ । (२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० ६, पृ. २०६ ( यह लेख कृष्णराज के पुत्र युवराज
गोविन्दराज का है)। ( ३ ) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा• १४, पृ. १२६ । (४) इण्डियन ऐपिटक्केरी, भा० ११, पृ. १५७ ।
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