________________
५४
राष्ट्रकूटों का इतिहास इसने वल्लभ (पश्चिमी चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा द्वितीय ) को जीत कर "राजाधिराज" और "परमेश्वर' की उपाधियां धारण की थीं; और थोड़े से सवारों को साथ लेकर कांची, केरल, चोल, और पाण्ज्य देश के राजाओं, और (कनौज के ) राजा हर्ष और वज्रट को जीतने वाली कर्णाटक की बड़ी सेना को हराया था।
यहाँ पर कर्णाटक की सेना से चालुक्यों की सेना का ही तात्पर्य है।
इसने दक्षिण विजय करते समय श्रीशैल (मद्रासके कर्नूल जिले ) के राजा को भी जीता था।
इसी प्रकार इसने कलिङ्गं, कोसले, मालव, ला, और टंक के राजाओं, तथा शेषों (नागवंशियों) पर भी विजय प्राप्त की थी। इसने उज्जयिनी में बहुतसा सुवर्ण दान दिया था, और महाकाल के लिए रत्न-जटित मुकुट अर्पण किये थे।
इससे प्रकट होता है कि, यह दक्षिण का प्रतापी राजा था । इसकी माता ने इसके राज्य के करीब करीब सारे ही ( चार लाख ) गांवों में थोड़ी बहुत पृथ्वी दान की थी।
वक्कलेरी से, श० सं० ६७६ (वि० सं० ८१४ ई० स० ७५७ ) का, एक ताम्रपत्रे मिला है । उससे प्रकट होता है कि, यद्यपि श० सं० ६७५ ( वि० सं० ८१०ई० स० ७५३ ) के पूर्व ही दन्तिदुर्ग ने चालुक्य ( सोलंकी) कीर्तिवर्मा (द्वितीय ) के राज्य पर अधिकार करलिया था, तथापि श० सं० ६७६ ( वि० सं० ८१४ ई० स० ७५७ ) तक भी सोलकियों के राज्य के दक्षिणी भाग पर उसी ( कीर्तिवर्मा द्वितीय) का अधिकार था । (1) एहोले के लेख में लिखा है:
"अपरिमितविभूतिस्फीतसामंतसेनामणिमुकुटमयूखाकान्तपादारविन्दः ।
युधि पतितगजेन्दाकन्दवीभत्सभूतो भयविगलितहों येन चकारि हर्षः" ॥ अर्थात्-चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय ने बैसवंशी राजा हर्ष को हरादिया । (२) समुद्र के पास का, महानदी और गोदावरी के बीच का, देश । (1) वा पर दक्षिण कोशज (माधुनिक मध्यप्रदेश) से तात्पर्य है; जो प्रवध प्रांत के
दक्षिणी भाग में था। अयोध्या, और लखनऊ, मादि उत्तर कोशल में गिने जाते थे। (४) नर्बदा के पश्चिम का बड़ौदा के पास का देश । (५) ऐपियाफिया इण्डिका, भाग १, पृ. २०१।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com