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मान्यखेट (दक्षिण) के राष्ट्रकूट
५ इन्द्रराज द्वितीय यह कर्कराज का बड़ा पुत्र था, और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । इसकी रानी चालुक्य (सोलंकी ) वंशकी कन्या, और चंद्रवंश की नवासी थी । इससे प्रकट होता है कि, उस समय राष्ट्रकूटों और पश्चिमी-चालुक्यों में किसी प्रकार का झगड़ा न था । इसकी सेनामें अश्वारोहियों, और गजारोहियों की भी एक बड़ी संख्या थी।
६ दन्तिवर्मा (दन्तिदुर्ग) द्वितीय यह इन्द्रराज (द्वितीय) का पुत्र था, और उसके बाद राज्य का स्वामी हुआ । इसने, विक्रम संवत् ८०४ और ८१० (ई० स० ७४८ और ७५३) के बीच, सोलङ्की ( चालुक्य ) कीर्तिवर्मा (द्वितीय) के राज्य के उत्तरी भाग, वातापी पर अधिकार कर, दक्षिण में फिर से राष्ट्रकूट राज्य की स्थापना की थी। यह राज्य इसके वंश में करीब २२५ वर्ष तक रहा था ।
सामनगढ (कोल्हापुर राज्य ) से, श० सं० ६७५ (वि० सं० ८१०= ई० स० ७५३ ) का, एक दानपत्रं मिला है । उसमें लिखा है:
"माहीमहानदीरेवारोधोभित्तिविदारणम् । + +
+ यो वल्लभ सपदि दंडलकेन ( बलेन ) जित्वा । राजाधिराजपरमेश्वरतामुपैति ॥ कांचीशकेरलनराधिपचोलपाण्डव्यश्रीहर्षवज्रटविमेदविधानदक्षम् । कपर्णाटकं बलमनन्तमजेयरत्यै (थ्यै').
नि () त्यैः कियद्भिरपि यः सहसा जिगाय ॥" अर्थात्-इस (दन्तिवर्मा द्वितीय) के हाथी माही, महानदी, और नर्मदा तक पहुंचे थे। ___
+ (१) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भाग ११, पृ. १११ (२) तलेगांव से मिले ताम्रपत्र में "मजेयमन्यैः" पाठ है। (३) इससे इसका माहीकांठा, मानवा, और उड़ीसा विजय करना प्रकट होता है।
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