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राष्ट्रकूटों का इतिहास
उक्त दशावतार के लेख में इस इन्द्र को अनेक यज्ञ करनेवाला, और वीर लिखा है । सम्भवतः इसका दूसरा नाम प्रच्छ्रकराज था ।
३ गोविन्दराज प्रथम
यह इन्द्रराज का पुत्र था, और उसके पीछे राज्य का स्वामी हुआ । पुलकेशी (द्वितीय) के, एहोले से मिले, श० सं० ५५६ ( वि० सं० ६९१= ई० स० ६३४ ) के, लेख में लिखा है कि, मंगलीश के मारे जाने, और उसके भतीजे पुलकेशी (द्वितीय) के गद्दी पर बैठने के समय उसके राज्य में गड़बड़ मच गयी थी । इस पर गोविन्दराज ने भी अन्य राजाओं के साथ मिलकर अपने पूर्वजों के गये हुए राज्य को फिर से प्राप्त करने की चेष्टा की । परंतु उसमें इसे सफलता नहीं मिली, और अन्त में इन दोनों के बीच मित्रता हो गयी।
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इससे प्रकट होता है कि, यह ( गोविन्दराज प्रथम ) पुलकेशी (द्वितीय) का समकालीन था, और इसका समय वि० सं० ६९१ ( ई० स० ६३४ ) के करीब होगा ।
गोविन्दराज का दूसरा नाम वीरनारायण मिलता है ।
४ कर्कराज (क) प्रथम
यह गोविन्दराज ( प्रथम ) का पुत्र, और उत्तराधिकारी था । इसके राज्य - समय ब्राह्मणों ने अनेक यज्ञ किये थे । यह स्वयं भी वैदिकधर्म का माननेवाला, दानी, और विद्वानों का सत्कार करनेवाला था ।
इसके तीन पुत्र थे: – इन्द्रराज, कृष्णराज, और नन्न ।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ६, पृ. ५-६
(२) " लब्ध्वा कालं भुवमुपगते जेतुमप्यायिकाख्ये, गोविन्दे च द्विरदनिकरैहत्तराभ्योधिरथ्या । बस्यानीकैर्युधिभयरसज्ञत्वमेकः प्रयातः तत्रावाप्तं फलमुपकृतस्या परेणापि सद्यः ॥ "
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