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राष्ट्रकूटों के फुटकर लेख
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दूसरी प्रशस्ति में, जो शक संवत् ६३१ ( वि० सं० ७६६ = ई० स० ७०९ ) की है, दी हुई वंशावली इस प्रकार है:
१ दुर्गराज
२ गोविन्दराज
३ स्वामिकराज
४ नन्दराज
इस प्रशस्ति में नन्दराज की उपाधि “युद्धशूर" लिखी है, और इस में जिस दान का उल्लेख है वह कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को दिया गया था । इस प्रशस्ति के शक संवत् को यदि गत संवत् मानलिया जाय तो उस दिन २४ अक्टूबर ईसवी सन् ७०६ आता है ।
उपर्युक्त दोनों प्रशस्तियों में के पहले तीनों नाम एक ही हैं; केवल चौथे नाम ही में अन्तर है । इनमें दिये संवतों आदि पर विचार करने से अनुमान होता है कि, सम्भवतः दूसरी प्रशस्ति का नन्दराज पहली प्रशस्ति के नन्नराज का छोटा भाई था; और उसके पीछे उसका उत्तराधिकारी हुआ होगा ।
इन दोनों प्रशस्तियों (ताम्रपत्रों ) की मुहरों में गरुड़ की आकृति बनी है ।
( १ ) इण्डियन ऐण्टिकेरी, भा० १८, १०२३४ ।
(२) सम्भव है यह दुर्गराज दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा दन्तिवर्मा प्रथम का ही दूसरा नाम हो; क्योंकि एक तो इस लेख के दुर्गराज और दन्तिवर्मा प्रथम का समय मिलता है; दूसरा दन्तिवर्मा का दूसरा नाम दन्तिदुर्ग भी था, जो दुर्गराज से मिलता हुआ ही है; भौर तीसरा दशावतार के मन्दिर से मिले लेखमें दन्तिवर्मा द्वितीय का नाम दन्तिदुर्गराज लिखा है । इसलिए यदि यह अनुमान ठीक हो तो इस लेख का गोविन्दराज दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा इन्द्रराज प्रथम का छोटा भाई होगा ।
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