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राष्ट्रकूटों का प्रताप राष्ट्रकूटों का राज्य “रट्टपाटी" या "रट्टराज्य" के नाम से प्रसिद्ध था। स्कन्दपुराण के अनुसार इसमें सात लाख नगर, और ग्राम थे:
"ग्रामाणां सप्तलक्षं च रटराज्ये प्रकीर्तितम् ॥" ___अर्थात्-ट्टों (राष्ट्रकूटों) के राज्य में सात लाख गाँव थे । इनकी सवारी के समय "टिविलि' नाम का बाजा खास तौर से बजा करता था । ___गोविन्दचन्द्र के, बसाही से मिले, वि. सं. ११६१ (ई. स. ११०४) के, ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, राजा कर्ण और भोज के मरने पर उत्पन्न हुई अराजकता को (राष्ट्रकूटों की) गाहडवाल (शाखा के) नरेश चन्द्रदेव ने ही दबाया था । ___ उसीमें यह भी लिखा है कि, गोविन्दचन्द्र ने "तुरुष्कैदंड' सहित वसही (बसाही) गांव दान किया था। इससे प्रकट होता है कि, जिस प्रकार मुसलमान बादशाह हिन्दुओं पर “जज़िया" लगाते थे, उसी प्रकार (गोविन्दचन्द्र के पिता) मदनपाल ने अपने राज्य में मुसलमानों पर "तुरुष्कदण्ड” नामका कर लगा रक्खा था। यह बात उसके प्रताप की सूचना देती है।
'रम्भामंजरी नाटिका' से प्रकट होता है कि, कन्नौज नरेश जयचन्द्र ने कालिंजर के चंदेल राजा मदनवर्म देव को विजय किया था । जयचन्द्र के पास विशाल सेना थी, और उसका राज्य गंगा और यमुना के बीच फैला हुआ था । (१) स्कन्दपुराण, कुमार खण्ड, अध्याय ३६, श्लोक १३५.
__ "याते श्रीभोजभूपे विबुधवरवधूनेत्रसीमातिथित्वं
श्रीकणे की तिशेषं गतवति च नृपे दमात्यये जायमाने । भर्तारं या व (घ) रित्री त्रिदिवविभुनिभं प्रीतियोगादुपेता
त्राता विश्वासपूर्व समभवदिह स दमापतिश्चन्द्रदेवः ॥" यहां पर कर्ण से हैहय (कलचुरी ) वंशी कर्ण का तात्पर्य है; जो वि.सं. १०६४ में विद्यमान था । परन्तु भोज के विषय में मतभेद है । कुछ लोग उसे परमार वंशी भोज मानते हैं; जो वि० सं १११० के करीब मरा था; मौर कुछ उसे प्रतिहार
(परिहार) भोज द्वितीय अनुपान करते हैं। यह वि० सं०४८० के करीब विद्यमान था। (३) गोविन्दचन्द्र के, अवध से मिले, वि० सं० ११८६ (ई० स० ११२६ ) के, ताम्रपत्र में भी "तुहष्कदंड" का उल्लेख है।
(लखनऊ म्यूज़ियम रिपोर्ट ( १९१४-१५, ) पृ० ४ पौर १०
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