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उपसंहार
सारेही उद्धृत प्रमाणों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि, पहले किसी समय राष्ट्रकूटों की एक शाखा ने कन्नौज में राज्य कायम किया था । परन्तु कुछ काल बाद उसके निर्बल हो जाने से वहां पर क्रमशः गुप्त, वैस, मौखरी, और पड़िहार नरेशों का राज्य हुआ । इसके बाद वि० सं० ११३७ ( ई० स० १०८० ) के करीब, एकवार फिर, राष्ट्रकूटों की दूसरी शाखा ने कन्नौज विजय कर वहां पर अपने राज्य की स्थापना की । यही दूसरी शाखा कुछ काल बाद
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“गाधिपुर" (कन्नौज) के सम्बन्ध से गाहड़वाल कहाने लगी । वि० सं० १२५० ई० ० स० ११६४ ) में, शहाबुद्दीनगोरी के आक्रमण के कारण, इस शाखा का अन्तिम प्रतापी नरेश जयच्चन्द्र मारागया । यद्यपि शहाबुद्दीन के लूट मारकर चले जाने पर जयच्चन्द्र का पुत्र हरिश्चन्द्र कन्नौज और उसके आस पास के प्रदेश का अधिकारी हुआ, तथापि यह विशेष प्रतापी नहीं था । इसके बाद जब कुतुबुद्दीन ऐबक, और उसके अनुयायी शम्सुद्दीन अल्तमश ने, उक्त प्रदेश पर अधिकार कर, इस वंश के स्वतंत्र राज्य की समाप्ति करदी, तब जयच्चन्द्र के पौत्र रात्र सीहाजी महुई में जा रहे' । परन्तु कुछ काल बाद वहां पर भी मुसलमानों का अधिकार हो गया, और वह महुई छोड़ कर देशाटन करते हुए, वि० सं० १२६० के करीब, मारवाड़ में आ पहुँचे ।
इस समय उन्हीं राव सीहाजी के वंशज जोधपुर (मारवाड़), बीकानेर, ईडर, किशनगढ़, रतलाम, सीतामऊ, सैलाना, और झाबुआ में राज्य करते हैं ।
( १ ) आईने अकबरी में राव सीहा का खोर ( शम्साबाद ) में रहना और वहीं माराजाना लिखा है ।
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