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राष्ट्रकूटों का प्रताप
बलहरा का राज्य कोंकण से चीनकी सीमा तक फैला हुआ है अक्सर अपने पड़ोसी राजाओं से लड़ता रहता है । परन्तु यह उन है । इसके शत्रुओं में “जुर्ज " गुजरात का राज भी है ।"
. इन खुर्दादबा ने, जो हिजरी सन् ३०० (वि० सं० १६१ = ई० स० ११२ ) में मराथा, 'किताबुलमसालिक उलमुमालिक' नाम की पुस्तक लिखी थी । उस में लिखा है:
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“हिन्दुस्तान में सबसे बड़ा राजा बलहरा है । " बलहरा " शब्द का अर्थ राजाओं का राजा होता है । इसकी अंगूठी में यह वाक्य खुदा है: - दृढ निश्चय के साथ प्रारम्भ किया हुआ प्रत्येक कार्य अवश्य सिद्ध होता है ।
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अलमसऊदी ने, हिजरी सन् ३३२ (वि० सं० १००१ = ई. स. १४४ ) के करीब, 'मुरुजुलजहब' नामकी पुस्तक लिखी थी। इसमें लिखा है :"मानकीर नगर, जो भारत का प्रमुख नगर है, बलहरा के अधीन है।
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( १ ) जिस समय यह पुस्तक लिखी गयी थी, उस समय दक्षिण में राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष प्रथम का राज्य था । इसलिए यह वृतांत उसी के समय का होना चाहिए । उसने गुजरात के राष्ट्रकूट राजा ध्रुवराज प्रथम पर भी चढ़ायी की थी। दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा ध्रुवराज का राज्य दक्षिण में रामेश्वर से उत्तर में अयोध्या तक फैल गया था । नेपाल की वंशावली में लिखा है कि- " श० सं० ८११ ( वि० सं० ६४६ ई० स०८८E ) में करनाटक वंश के संस्थापक क्यानदेव ने दक्षिण से प्राकर सारे नेपाल पर अधिकार कर लिया था, और उसके बाद उसके ६ वंशज वहां के शासक रहे । श० सं० ८११ में करनाटक का राजा कृष्णराज द्वितीय था, और उसकी सातवीं पीढी में कर्कराज द्वितीय हुआ। उसी से चालुक्य वंशी तैलप द्वितीय ने राज्य छीन लिया था । इससे अनुमान होता है कि, मान्यखेट के राजा ध्रुवराज प्रथम के बाद उसके वंशजों ने, अयोध्या से आगे बढ, नेपाल के कुछ भागपर अधिकार कर लिया होगा, और बाद में कृष्णराज द्वितीय ने आक्रमण कर वहांके सारे देश को ही हस्तगत कर लिया होगा । नेपाल भौर चीन की सीमाओं के मिली होने से सुलेमान ने इनके राज्य का चीन की सीमा तक फैला हुआ होना लिखा है ।
(२) ईलियट्स हिस्ट्री भॉफ़ इण्डिया, भा० १५० १३ । यह वृत्तान्त कृष्णराज द्वितीय के है 1
समय का
( ३ ) ईलियट्स हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, भा० १, पृ० १६ २४ | यह हाल कृष्णराज तृतीय के समय का है ।
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