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राष्ट्रकूटों का प्रताप अरबी भाषा में 'सिल्सिलातुत्तवारीख' नामकी एक पुस्तक है । उसे अरब व्यापारी सुलेमान ने, हिजरी सन् २३७ (वि. सं. १०८ = ई. स. ८५१) में, लिखा था; और सिराफ निवासी अबू दुल हसन ने, हि. स. ३०३ (वि. सं. २७३ ई. स. ११६) में, उसे दुरुस्तकर संपूर्ण किया था । उसमें लिखा है:___"हिन्दुस्तान और चीन के लोगों का अनुमान है कि, संसार में चार बड़े या खास बादशाह हैं । पहला, सबसे बड़ा, अरवदेश (बगदाद) का खलीफ़ा; दूसरा चीन का बादशाह; तीसरा यूनान का बादशाह; और चौथा बल्हरा, जो कान छिदे हुए पुरुषों (हिन्दुओं) का राजा है। ____ यह बल्हरा भारत के दूसरे राजाओं से अत्यधिक प्रसिद्ध है, और अन्य भारतवासी इसे अपने से बड़ा मानते हैं । यद्यपि भारतीय नरेश अपने प्रदेशों के स्वतंत्र स्वामी हैं, तथापि वे सबही बल्हरा को अपने से श्रेष्ठ मानते हैं; और उसके प्रति श्रद्धा दिखलाने के लिए उसके भेजे राजदूतों का बड़ा आदर करते हैं । बलहरा भी अरबों की तरह अपनी सेना का वेतन समय पर देदेता है । उसके पास बहुत से घोड़े और हाथी हैं । उसे धन की भी कमी नहीं है । उसके यहां के सिक्के "तातारिया द्रम्म" कहाते हैं । उनका वजन अरबी द्रम्मों से डेवढा होता है, और उन पर हिजरी सन् के स्थान पर बल्हराओं का राज्यसंवत् लिखा रहता है ।
ये बल्हरा नरेश दीर्घायु होते हैं, और बहुधा इनमें का प्रत्येक राजा ५० वर्ष राज्य करता है । ये राजा अरबों पर बड़ी कृपा रखते हैं । "बल्हरा" इनका वैसा. ही खानदानी ख़िताब है, जैसाकि ईरान के बादशाहों का "खुसरो" है ।
(१) ईलियट्स हिस्ट्री मॉफ़ इण्डिया, भा. १, पृ. ३-४
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