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राष्ट्रकूटों के समय की विद्या और कला कौशल की अवस्था ३७ इस वंश के राजाओं की विद्वत्ता का प्रमाण, अमोघवर्ष (शर्व) रचित, 'प्रश्नोत्तररत्नमालिका' अब तक विद्यमान है । इसकी रचना बहुत ही उत्तम कोटि की है । यद्यपि कुछ लोग इसे शंकराचार्य की, और कुछ श्वेताम्बर जैनाचार्य की बनाई हुई मानते हैं, तथापि दिगम्बर जैनों की लिखी प्रतियों में इसे अमोघवर्ष की रचना ही लिखा है । यही बात इससे पहले के अध्याय में उद्धृत किये हुए श्लोकों से भी सिद्ध होती है। ___ इस पुस्तक का अनुवाद तिब्बती भाषा में भी हुआ था। उसमें भी इसके कर्ता का नाम अमोघवर्ष ही लिखा है। ___इसी अमोघवर्ष ने, कनाडी भाषा में, 'कविराजमार्ग' नाम की एक अलङ्कार
की पुस्तक भी लिखी थी। ___ऊपर लिखा जा चुका है कि, इन नरेशों के समय कला कौशल की भी अच्छी उन्नति हुई थी। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण इलोरा की गुफा का कैलास भवन नामक मंदिर विद्यमान है। यह कैलासभवन राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज (प्रथम) के समय पर्वत काटकर बनवाया गया था । इसकी प्रशंसा करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। (१) अपनी कला के लिए जगत्प्रसिद्ध अजंता की गुफाओं में की पहले और दूसरे
नम्बर की गुफायें भी इन राजाओं के राज्य के प्रारम्भकाल में ही बनी थीं।
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