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राष्ट्रकूटों के समय की विद्या और कला कौशल की अवस्था
इनके समय विद्या, और कला कौशल की अच्छी उन्नति हुई थी । इस वंश के राजा, स्वयं विद्वान् होने के साथ ही, अन्य विद्वानों का आदर करने में भी कुछ उठा नहीं रखते थे ।
'राज वार्तिक,' 'न्यायविनिश्चय,' 'अष्टशती' और 'लघीयस्त्रय' का कर्ता तार्किक अकलंक भट्ट; 'गणितसारसंग्रह' का कर्त्ता महावीराचार्य; 'आदिपुराण' और 'पार्श्वाभ्युदय' का लेखक जिनसेन; 'हरिवंशपुराण' का कर्ता दूसरा जिनसेन; 'अत्मानुशासन' का रचयिता गुणभद्राचार्य; 'कविरहस्य' का कवि हलायुधे; 'यशस्तिलक चम्पू,' और 'नीतिवाक्यामृत' नामक राजनैतिक ग्रन्थ का कर्ता सोमदेव सूरि; 'शान्तिपुराण' का कर्ता, कनाडी भाषा का कवि पोन्न (जिसे कृष्ण तृतीय ने “उभयभाषा चक्रवर्ती" की उपाधि दी थी ); 'यशोधरचरित,' 'नागकुमारचरित' और 'जैनमहापुराण' का कर्ता पुष्पदन्त; 'मदालसा चम्पू' का कर्ता त्रिविक्रमभट्ट; 'व्यवहारकल्पतरु' का संपादक लक्ष्मीधर; 'नैषधीयचरित' और ‘खण्डनखण्डखाद्य' बनाने वाला कवि श्रीहर्ष; आदि विद्वान् इन्हीं के समय हुऐ थे ।
( १ ) सर भगडारकर 'कविरहस्य' के कर्ता हलायुध को ही 'अभिधानरत्नमाला' का कर्ता भी मानते हैं । परन्तु मिस्टर वेबर उक्त माला के कर्ता का ईश्वी सन् की ग्यारहवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में होना अनुमान करते हैं I
( २ ) करंजा के जैन पुस्तक भंडार में 'ज्जालामालिनीकल्प' नामक एक पुस्तक है। यह कृष्ण तृतीय के राज्य समय, श० सं० ८६१ में, समाप्त हुई थी। दिगम्बर जैन संप्रदाय की 'जयधवला' नामक सिद्धान्त टोका अमोघवर्ष प्रथम के समय बनी थी ।
मङ्खकविकृत 'श्रीकण्ठचरित' से प्रकट होता है कि, काश्मीर नरेश जयसिंह के मंत्री भलकार ने जिस समय एक बड़ी सभा की थी, उस समय कन्नौज नरेश गोविंदचन्द्र ने पति सुइल को अपना दूत बना कर भेजा था :
"ग्रन्यः स सुहलस्तेन ततोऽवन्द्यत पण्डितः । दूतो गोविन्दचन्द्रस्य कान्यकुब्जस्य भूभुजः ॥"
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(सर्ग २५ श्लोक १०२
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