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राष्ट्रकूटों का धर्म अर्थात्-वर्द्धमान ( महावीर ) को प्रणाम करके 'प्रश्नोतररत्नमालिका' नामकी पुस्तक बनाता हूं।
ज्ञान के कारण राज्य छोड़ने वाले अमोघवर्ष ने यह 'रत्नमालिका' नामकी पुस्तक बनायी। महावीराचार्य रचित 'गणितसारसंग्रह' में लिखा है:
"प्रीणितः प्राणिशस्योघो निरीतिनिरवग्रहः । श्रीमतामोघवर्षेण येन स्वेष्टहितैषिणा ॥१॥ - - -- - - - - विध्वस्तैकान्तपक्षस्य स्याद्वादन्यायवादिनः ।
देवस्य नृपतुङ्गस्य वर्द्धतां तस्य शासनम् ॥ ६॥" अर्थात्-अमोघवर्ष के राज्य में प्रजा सुखी है, और पृथ्वी खूब धान्य उत्पन्न करती है । जैनमतानुयायी राजा नृपतुङ्ग (अमोघवर्ष ) का राज्य उत्तरोत्तर वृद्धि करता रहे। ___ इन अवतरणों से भी अमोघवर्ष (प्रथम ) का जैनमतानुयायी होना सिद्ध होता है । सम्भवतः इसने अपनी वृद्धावस्था के समय उक्त मत ग्रहण करलिया होगा।
इन राजाओं के समय पौराणिक मत की अच्छी उन्नति हुई थी, और बहुत से शिव, और विष्णु के नये मन्दिर बनवाये गये थे। ___ इनके समय से पूर्व पहाड़ काटकर जितनी गुफायें आदि बनवायी गयी थीं वे सब बौद्धों, जैनों, और निर्ग्रन्थों के लिए ही थीं । परंतु इन्हीं के समय पहले पहल इलोरा की गुफा का "कैलासभवन" नामक शिव का मन्दिर तैयार करवाया गया था। __इनकी कन्नौजवाली शाखा के अधिकांश राजा वैष्णवमतानुयायी थे, और उनके दानपत्रों की संख्या को देखने से ज्ञात होता है कि, वह शाखा दान देने में अन्य राजवंशों से बहुत बढी चढी थी।
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