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राष्ट्रकूटों का इतिहास इस वंश के राजा, प्रारम्भ से लेकर आजतक ( पीढी दर पीढी ), इसी नाम से पुकारे जाते हैं । हिन्दुस्तान के वर्तमान राजाओं में सब से बड़ा, और प्रतापी यही, मानकीर ( मान्यखेट ) का राजा, बलहरा है । अन्य बहुत से राजा इसे अपना सरदार समझते हैं, और इसके राजदूतों का बड़ा मान करते हैं। इसके राज्य के चारों तरफ़ अनेक अन्य राज्य हैं । मानकीर बड़ा नगर है, और यह समुद्र से ८० फर्सर्ग के फासले पर है । बलहरा के पास एक बड़ी फौज है । यद्यपि उस में बहुत से हाथी भी हैं, तथापि इसकी राजधानी पहाड़ी प्रदेश में होने से उसमें अधिक संख्या पैदल सिपाहियों की ही है । कन्नौज नरेश बयूरी इस वंश के नरेशों का शत्रु है । वलहरा के यहां की भाषा का नाम “कीरिया"
____ अलइस्तखैरी ने, हि. स. ३४० ( वि. सं. १००८ ई. स. १५१ ) में 'किताबुल अकालीम' लिखी थी; और इनहोकल ने, जो हि. स. ३३१ और ३५८ ( वि. सं. १००० और १०२५=ई. स. १४३ और १६८ ) के बीच भारत में आया था, हि. स. ३६६ ( ई. स. १७६ ) में, 'अष्कलउल बिलाद' नामक पुस्तक लिखी थी। वे लिखते हैं:
"बल्हरा का राज्य कर्बाय से सिमूर तक फैला हुआ है। उस में और भी बहुत से भारतीय नरेश हैं । बलहरा मानकीर में रहता है, जो एक बड़ा नगर है।"
ऊपर उद्धृत किये, अरब यात्रियों के, अवतरणों से प्रकट होता है कि, उस समय राष्ट्रकूट राजाओं का प्रताप बहुत बढा चढा था ।
(1) फर्सग करीब तीन मील का होता है । परन्तु सर ईलियट ने अपनी 'हिस्ट्री' में उसे ८
मील के बराबर लिखा है। (२) यह "प्रतिहार" का बिगड़ा हुआ रूप प्रतीत होता है। (३) सम्भवतः इसी को आजकल "कनारी" ( भाषा ) कहते हैं । ( ४ ) ईलियट्स हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, भा० १, पृ. २७ (५) ईडियन हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, भा. १, पृ. ३४ (६) खंभात ( Cambay) (७) सम्भवतः यह नगर सिन्ध की सरहद पर होगा। इस से राष्ट्रकूटों के राज्य की
उत्तरी नीमा का पता चलता है।
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