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राष्ट्रकूटों का इतिहास ५-उस समय की प्रशस्तियों को देखने से यह कल्पना ही निर्मूल प्रतीत होती है; क्योकि युवराज गोविन्दचन्द्र के, वि. सं. ११६६ (ई. स. ११०१) के, ताम्रपत्र में लिखा है:
"प्रध्वस्ते सूर्यसोमोवविदितमहाक्षत्रवंशद्वयेऽस्मिन् उत्सन्नप्रायवेदध्वनि जगदखिलं मन्यमानः स्वयंभूः । कृत्वा देहग्रहाय प्रवणमिह मनः शुद्धबुद्धिर्धरित्र्यां उद्धर्नुधर्ममार्गान् प्रथितमिह तथा क्षत्रवंशद्धयं च ॥ वंशे तत्र ततः स एव समभूद्भपालचूडामणिः ।
प्रध्वस्तोद्धतवैरिवीरतिमिरः श्रीचन्द्रदेवो नृपः ॥" । अर्थात्-सूर्य और चन्द्रवंशी राजाओं के नष्ट होजाने से जब संसार में वैदिक धर्म का ह्रास होने लगा, तब स्वयं ब्रह्मा ने उसके उद्धार के लिए चंद्रदेव के रूप में इस वंश में अवतार लिया ।
इससे प्रकट होता है कि गाहड़वाल वंश उस समय भी बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता था।
अन्य शुद्ध क्षत्रिय वंशो के साथ इनका विवाह सम्बन्ध होना भी इस शङ्काको निर्मूल सिद्ध करता है। ____ अन्त में सब प्रमाणों पर विचार करने से सिद्ध होता है कि, राष्ट्रकूटों की ही एक शाखा गाहड़वाल के नाम से प्रसिद्ध हुई थी। इस विषय पर पहले "राष्ट्रकूट और गाहड़वाल" नामक अध्याय में भी विचार किया जाचुका है । (१) कुछ लोगों का अनुमान है कि, जिस प्रकार राठोड़ों और सीसोदियों-दोनों ही के वंशों
में चूंडावत, ऊदावत, और जगमालोत नाम की शाखाएं चली हैं, उसी प्रकार संभव है, राष्ट्रकूट वंश में भी कोई दूसरी यादव नाम की शाखा चली हो; और उसी में भागे चलकर सात्यकि नाम का व्यक्ति विशेष भी उत्पन्न हुआ हो । परन्तु पिछले लोगों ने नाम-साम्य को देखकर उसे यादव वंश का प्रसिद्ध सात्यकि ही समझ लिया हो।
परन्तु जिस प्रकार राठोड़ों और सीसोदियों के वंश को कुछ शाखामों के नाम मिलजाने पर भी ये दोनों वंश भिन्न समझे जाते हैं, उसी प्रकार प्रसिद्ध चंद्रवंशी यादव और राठोड़ वंश की यादव शाखा को भी भिन्न ही समझना चाहिये।
इस विषय पर "राष्ट्रकूटों का वंश" नामक अध्याय में विचार किया. आचुका है। इस के सिवाय एकही नाम की और भी अनेक शाखाएं प्रचलित हैं; जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य प्रादि भिन्न भिन्न वर्षों तक में पाई जाती हैं । जैसे-नागदा, दाहिमा, सोनगरा, श्रीमाली, गौड प्रादि ।
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