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अन्य आक्षेप
३१ इन श्लोकों में यदुवंश का उल्लेख न होकर उसकी 'भाटी' नामक शाखा का उल्लेख मिलता है। क्या इससे यह समझा जा सकता है कि, भाटी और यादव दो भिन्न वंश हैं ? यदि नहीं, तो फिर क्या कारण है कि, गोविन्दचन्द्र के, युवराज अवस्था के, वि. सं. ११६१, ११६२, और ११६६ के, केवल तीन ताम्रपत्रों में गाहड़वाल वंश का उल्लेख होने से ही राष्ट्रकूटों और गाहड़वालों को भिन्न वंशी मानलिया जाय । इसके अतिरिक्त, आज कल भी चौहानों की देवड़ा आदि, और गुहिलोतों की सीसोदिया आदि शाखाओं के लोग अपना परिचय चौहान या गुहिलोत के नाम से न देकर देवड़ा या सीसोदिया आदि शाखाओं के नाम से ही देते हैं। इसी प्रकार प्रसिद्ध हैहयवंशी नरेशों का चलाया संवत् उनकी कलचुरी शाखा के नाम पर ही “कलचुरि संवत्" कहाता है।
४-सारनाथ से महाराजाधिराज गोविन्दचन्द्र की रानी, कुमार देवी, का एक लेख मिला है। उससे ज्ञात होता है कि, वह (कुमारदेवी) (राष्ट्रकूट) महण की नवासी थी, और उसका विवाह गाहड़वाल राजा गोविन्दचन्द्र से हुआ था। संध्याकरनंदी रचित 'रामचरित' में इस महण (मथन) को राष्ट्रकूटवंशी लिखा है। ऐसे विवाह सम्बन्ध अब भी होते हैं। परन्तु उनमें इतना ध्यान अवश्य रक्खा जाता है कि, जिस प्रशाखा में पुरुष उत्पन्न हुआ हो कन्या भी उसी प्रशाखा की नवासी न हो।
(1) चंदेलवंशी क्षत्रियों के लेखों में उनको, अत्रि के पुत्र चन्द्र का वंशज मानकर, चद्रात्रेय
लिखा है । 'पृथ्वीराजरासो', में उनकी उत्पत्ति गाहड़वाल नरेश इन्द्रजित् के पुरोहित हेमराज की विधवा कन्या हेलवती के गर्ग और चंद्रमा के मौरससे लिखी है। पन्तु चंदेल अपने को राष्ट्रकूटों का वंशज बतलाते हैं । इनका राज्य बुंदेलखंड और उसके आस पास था। इसी प्रकार बुंदेले भी गाहहवालों के वंशज माने जाते हैं ? (परन्तु इन में पीछे से, कुछ परमार, चौहान मादि भी मिल गये हैं ?) इस
समय अोळ, टेहरी, पन्ना प्रादि में बुंदेल नरेशों का राज्य है। (२) यद्यपि कोटा राज्य (राजपूताना ) के नरेश चौहान हैं, तथापि वे अपना परिचय
उक्त वंश की हाडा' शाखा के नाम से ही देते हैं। (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भाग ६ पृ. ३१६-३२८
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