________________
राष्ट्रकूटों का इतिहास शताब्दी तक क्षत्रियों का गोत्र, और प्रवर उनके पुरोहित के गोत्र, और प्रवर के अनुसार ही समझा जाता था । इसलिए संभव है, अन्तिमवार कन्नौज की तरफ़ आने पर, अपने पुराने पुरोहित छूट जाने से, राष्ट्रकूटों ने नये पुरोहित नियत करलिए हों, और इसी से इनका गोत्र बदल कर गौतम के स्थान में काश्यप हो गया हो । अथवा पहले ये काश्यप गोत्री ही रहे हों । परन्तु मारवाड़ में आने पर, पुरोहित के बदल जाने से, इन्होंने गौतम गोत्र धारण करलिया हो।
राजाओं की प्रशस्तियों में, बहुधा, उनके गोत्रों का उल्लेख नहीं मिलता है । सम्भव है, इसीसे ये अपना पुराना गोत्र भूल कर काश्यप गोत्री बन गये हों। इस प्रकार का गोत्र-परिवतर्न अनेक स्थानों पर देखने में आता है । ऐसी हालत में, चिरकाल से एक समझे जानेवाले राष्ट्रकूट और गाहड़वाल वंश को, केवल गोत्रों के आधार पर, एक दूसरे से भिन्न मानलेना उचित प्रतीत नहीं होता । ३-प्रतिहार बाउक का एक लेख जोधपुर से मिला है । उसमें लिखा है:--
"भट्टिकं देवराज यो वल्लमण्डलपालकम् ।
निपात्य तत्क्षणं भूमौ प्राप्तवान् छत्रचिह्नकम् ॥" अर्थात्-जिसने वल्लमंडल के भाटी राजा देवराज को मारकर छत्र प्राप्त किया था। तथा
"[भट्टि ] वंशविशुद्धायां तदस्मात्ककभूपतेः ।
श्रीपद्मिन्यां महाराश्यां जातः श्रीवाउकः सुतः ॥ २६ ॥" अर्थात्-प्रतिहार नरेश कक्के, भाटी वंश की रानी से, बाउक नाम का पुत्र हुआ।
( याज्ञवल्क्य स्मृति, विवाह प्रकरण:
"असमानार्ष गोत्रजां" ( श्लो० ५३ ) की टीका ) विक्रम की दूसरी शताब्दी के प्रारम्भ में होने वाले कवि अश्वघोष के बनाये 'मौन्दरानन्द महाकाव्य में भी इस बात की पुष्टि होती है । उसमें लिखा है"गुरोगोंत्रादतः कौत्सास्ते भवन्तिस्म गौतमाः ॥ २२ ॥"
( सौन्दरानन्द महाकाव्य, वर्ग 1)
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com