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अन्य प्राक्षेप यस्मादागत्य विप्रश्चतुरुदधिमहीवेदिनिक्षिप्तयूपो
बप्पाख्यो वीतरागश्चरणयुगमुपासीत हारीतराशेः॥" अर्थात्-( महाराणाओं के वंश के संस्थापक) बप्प नामक ब्राह्मण ने, आनदपुर से आकर, हारीतराशि की सेवा की।
यही बात समरसिंह के, आबू पर्वत पर के (अचलेश्वर के मंदिर के पास वाले मठ से मिले ), वि० सं. १३४२ (ई. स. १२८५) के, लेख से भी प्रकट होती है। राणा कुंभा के समय बने 'एकलिंगमाहात्म्य' में लिखा है:
"आनन्दपुरविनिर्गतविप्रकुलानन्दनो महीदेवः।
जयति श्रीगुहदत्तः प्रभवः श्रीगुहिलवंशस्य ॥" अर्थात्-आनन्दपुर से आने वाला, और ब्राह्मण वंश को आनन्द देने वाला गुहदत्त गुहिलवंश का संस्थापक था।
जयदेव कवि रचित 'गीतगोविन्द' की, स्वयं महाराणा कुंभा की लिखी, 'रसिकप्रिया' नाम की टीका में लिखा है:
___ "श्रीवैजवापेनसगोत्रवर्यः श्रीवप्पनामा द्विजपुङ्गवोऽभूत् ।
हरप्रसादादपसादराज्यप्राज्योपभोगाय नृपोभवद्यः।" अर्थात्-वैजवापगोत्री ब्राह्मण बप्प ने शिव की कृपा से राज्य प्राप्त किया। गुहिलोत बालादित्य के, चाटसू (जयपुर राज्य) से मिले; लेख में लिखा है:
"ब्रह्मतत्रान्वितोऽस्मिन् समभवदसमे" अर्थात्-इस वंश में (परशुराम के समान) ब्राह्म, और क्षात्र तेजों को धारण करने वाला (भर्तृभट) राजा हुआ ( यहां पर कविने "ब्रह्मक्षत्र" में श्लेष रख कर अर्थ को बड़ी खूबी से प्रकट किया है)
इन अवतरणों से प्रकट होता है कि, गुहिलोत वंश का संस्थापक वैजवाप गोत्री नागर ब्राह्मण था । परन्तु क्या ऐतिहासिक इस बात को मानने के लिए तैय्यार हैं !
यही हाल सोलंकी (चालुक्य) वंश का है । सोलंकी विक्रमादित्य ठे) के लेख में लिखा है:
"प्रोस्वस्ति समस्तजगत्प्रसूतेभंगवतोब्रह्मणः पुत्रस्यात्रनेत्रसमुत्पन्नस्य यामिनी. कामिनीललामभूतस्य सोमस्यान्वये.. श्रीमानस्ति चालुक्यवंशः।"
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