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राष्ट्रकूटों का इतिहास अर्थात्-चन्द्र के कुल में चालुक्य वंश हुआ। यही बात इनकी अन्य अनेक प्रशस्तियों, हेमचन्द्र रचित 'याश्रयकाव्य,' और जिनहर्षगणि रचित 'वस्तुपाल चरित' से भी प्रकट होती है ॥
सोलंकी कुलोत्तुंगचूड़देव (द्वितीय) के, वि. सं. १२०० ( ई. स. ११४३ ) के, ताम्रपत्र में इनको चन्द्रवंशी, मानव्य गोत्री, और हारीतिका वंशज लिखा है।
काश्मीरी कवि बिहण ने, अपने बनाये 'विक्रमाङ्कदेव चरित' नामक काव्य में, इस ( चालुक्य-सोलंकी) वंशकी उत्पत्ति ब्रह्मा के चुल्लू (अंजलि ) के जलसे लिखी है। इसका समर्थन सोलंकी कुमारपाल के समय के वि. सं. १२०० ( ई. स. ११५१ ) के लेख, खंभात के कंथुनाथ से मिले लेख, और त्रिलोचनपाल के वि. सं. ११०७ ( ई. स. १०५० ) के ताम्रपत्र आदि से भी होता है ।
हैहय ( कलचुरी ) वंशी युवराजदेव (द्वितीय) के समय के, बिल्हारी ( जबलपुर जिले ) से मिले, लेख में चालुक्य वंश का द्रोण के चुल्लू से उत्पन्न होना लिखा है। _ 'पृथ्वीराजरासो' में सोलंकियों को अग्निवंशी लिखा है, और इस समय के सोलंकी ( और बघेले ) भी अपने पूर्वज चालुक्य को वशिष्ठ की अग्नि से उत्पन्न दुआ मानते हैं। __आगे चौहानवंश की उत्पत्ति पर विचार किया जाता है:
कर्नल जेम्सटॉड को मिले, वि. सं. १२२५ ( ई. स. ११६८ ) के, हांसी के किले वाले लेख में, और देवड़ा ( चौहान ) राव लुभा के, आबू पर्वत पर के ( अचलेश्वर के मंदिर से मिले ), वि. सं. १३७७ ( ई. स. १३२०) के, लेखमें चाहमान ( चौहान ) वंश का चन्द्रवंशी और वत्सगोत्री होना लिखा है।
वीसलदेव ( चतुर्थ ) के समय के लेख में, नयचन्द्रसूरि रचित 'हम्मीर महा( काव्य' में, और 'पृथ्वीराजविजय' में इस वंश को सूर्यवंशी कहा है । परन्तु 'पृथ्वीराजरासो' में चौहानों का अग्निवंशी होना लिखा है । आजकल के चौहान भी अपने पूर्वज का वशिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न होना मानते हैं ।
(१) ऐपिग्राफिया इगिडध, भा. १ पृ. २५७ (२) सोलंकियों की एक शाखा
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