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राष्ट्रकूट और गाहड़वाल अर्थात्-जिस मदनपाल के अतुल पराक्रम के सामने मुसलमानों के गंगा तक पहुँचने का खयाल भी नहीं किया जाता था।
ऐसी हालत में यदि मदन के पिता गोपाल ने कन्नौज विजय जैसा प्रशंसनीय कार्य किया होता, तो उसका उल्लेख भी वह अवश्य करता। __ इन सब बातों पर विचार कर बदायूं के चन्द्रदेव को, और कन्नौज विजयी चन्द्र को एक मान लेने से सारी गड़बड़ दूर हो जाती है; और साथ ही इसमें किसी प्रकार की आपत्ति भी नज़र नहीं आती।
सोलंकी त्रिलोचनपाल के, वि० सं० ११०७ (ई. स. १०५०) के, ताम्रपत्र में कन्नौज के जिस राष्ट्रकूट घराने का उल्लेख है, वह बहुत पुराना होना चाहिये; क्योंकि उसी घराने में चालुक्य (सोलंकी) वंश के मूल पुरुष का विवाह होना लिखाहै । ऐसी हालत में त्रिलोचनपाल के ताम्रपत्र वाले राष्ट्रकूट वंश, और सेट माहेठ के लेख वाले राष्ट्रकूट वंश के बीच सम्बन्ध स्थापित करना सम्भव प्रतीत नहीं होता।
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