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राष्ट्रकूट और गाहड़वाल ऐसी हालत में यह अनुमान करना कि, चन्द्र ने ईसवी सन् की ११ वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में कन्नौज विजय किया था, और इसके पूर्व ( अर्थात्-इसी शताब्दी के चतुर्थ भाग में ) वहां पर बदायूं की राष्ट्रकूट शाखा के गोपाल का अधिकार था युक्ति संगत प्रतीत नहीं होता ।
श्रीयुत सन्याल, कुतुबुद्दीन ऐबक के ई. स. १२०२ (वि. सं. १२५९) में बदायूं पर अधिकार कर उसे शम्सुद्दीन अल्तमश को जागीर में देदेनेसे, वहां से मिले लखनपाल के लेखेको उस समय से पहले का मानते हैं। ___इस मत के अनुसार, यदि लखनपाल का लेख इससे एक वर्ष पूर्व (वि० सं० १२५८ ई० स० १२०१) का मानलिया जाय, तो उसके और सेठ माहेठ से मिले मदन के, वि० सं० ११७६ ( ई० स० १११८ ) के ( बौद्ध), लेख के बीच करीब ८२ वर्ष का अन्तर आवेगा । यह बदायूं के मदन से लेकर ( उसके बाद की ) लखनपाल तक की ४ पीढियों के लिए उचित ही है। साथ ही यदि उस यवन आक्रमण का समय (जिसमें, श्रीयुत सन्याल के मतानुसार, मदन ने गाहड़वाल नरेश गोविंदचन्द्र के सामन्त की हैसियत से युद्ध किया था), जिसका उल्लेख गोविन्दचन्द्र की रानी कुमार देवी के (बौद्ध) लेख में मिलता है, वि० सं० ११७१ (ई० स० १११४) में मानलिया जाय, और उसमें से मदन के पहले की (चन्द्र तक की) ३ पीढियों के लिये ६० वर्ष निकाल दिये जाँय, तो चन्द्र का समय वि० सं० ११११ (ई० स० १०५४) के करीब आवेगा । ऐसी हालत में अनुमान के आधार पर चन्द्र का जन्म वि० सं० १०६० (ई० स० १०३३) के करीब मान लेने से उसका वि० सं० ११५७ (ई० स० ११००) (अर्थात्-६७ वर्ष की आयु ) तक जीवित रहना असम्भव नहीं कहा जासकता। चन्द्र का वृद्धावस्था तक जीवित रहना, उसके वि० सं० ११५४ (ई० स० १०६७) में अपनी वृद्धावस्था के कारण अपने पुत्र (कन्नौज के) मदनपाल को राज्य–भार सौप देने, और इसके तीनवर्ष बाद वि० सं० ११५७
(१) इलियट्स हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, भा. २. पृ. २३२ और तबकातेनासिरी (रेवर्टी का
Raverty's अनुवाद), पृ. ५३० (२) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० १, पृ०६४ (३) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा०, पृ. ३२४
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