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राष्ट्रकूट और गाहड़वाल
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रामपुर ( फ़र्रुखाबाद जिले में ) का राजा, खिमसेपुर ( मैनपुरी जिले में ) का राव, और सुरजई और सौरड़ा के चौधरी भी अपने को जयच्चन्द्र के पुत्र जजपाल के वंशज, और राठोड़ कहते हैं । इसी प्रकार विजैपुर, मांडा आदि के राजा भी अपने को जयच्चन्द्र के भाई माणिकचन्द्र की औलाद में समझते हैं, और चंद्रवंशी गाहड़वाल राठोड़ कहते हैं । इन बातों से भी गाहड़वालों का राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों ) की ही एक शाखा होना सिद्ध होता है ।
ऐसी हालत में, इतने प्रमाणों के होते हुए, राष्ट्रकूटों और गाहड़वालों को भिन्न वंशी मानना उचित प्रतीत नहीं होता ।
सेट माहेठ से मिले, वि० सं० १९७६ (ई स० १११८) के, बौद्ध लेखे में गोपाल के नाम के साथ " गाधिपुराधिप " ( कन्नौजनरेश) की उपाधि लगी होने से, श्रीयुत एन. बी. सन्याल उस लेख के गोपाल और उसके उत्तराधिकारी मदनपाल को, और बदायूं के राष्ट्रकूट नरेश लखनपाल के लेख के गोपाल और मदनपाल को एक ही अनुमान करते हैं । उनके मतानुसार, गोपाल ने ईसवी सन् की ११ वीं शताब्दी के चतुर्थ पाद में (अर्थात् - वि० सं० १०७७ - ई० स० १०२० के करीब कन्नौज के प्रतिहार वंश की समाप्ति होने, और ईसवी सन् की ११ वीं शताब्दी की समाप्ति के करीब गाहड़वाल चन्द्र के कन्नौज राज्य की स्थापना करने के बीच ) वहां (कन्नौज) पर अधिकार कर लिया था । इसके बाद गाहड़वाल वंशी चन्द्र ने इसी गोपाल से वहां का अधिकार छीना था । इसी से उपर्युक्त सेट माहेठ के लेख में गोपाल के नाम के साथ “गाधिपुराधिप" की उपाधि लगी है ।
(१) शम्साबाद के लोगों का कहना है कि, कन्नौजके छिनजानेपर जयचन्द्र के कुछ वंशज नेपाल की तरफ़ चले गये थे । ये अपने को राठोड़ कहते हैं । भानसे करीब ५० वर्ष पूर्व तक जब कभी उनके यहां विवाह मादि मांगलिक कार्य होता था, तब वे यहां ( शमसाबाद) से एक ईंट मंगवाते थे । इससे उनका मातृ-भूमि प्रेम प्रकट होता है। ( २ ) इण्डियन ऐरिटक्केरी, भा० २४, पृ० १७६
(३) जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, ( १६२५ ) भा० २१, पृ० १०३
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