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राष्ट्रकूटों का इतिहास परन्तु गाहड़वालों की प्रशस्तियों में उनके राज्य संवत् का उल्लेख न होकर विक्रम संवत् का प्रयोग होता था । पांचवां, पालवंशी राजा धर्मपाल का विवाह राष्ट्रकूट राजा परबल की पुत्री से, और पालवंशी राजा राज्यपाल का विवाह राष्ट्रकूट राजा तुङ्ग की कन्या से हुआ था । पहले राष्ट्रकूटों और गाहड़वालों का एक होना सप्रमाण सिद्ध किया जा चुका है । ऐसी हालत में मिस्टर हार्नले का यह अनुमान ठीक नहीं होसकता ।
मिस्टर विन्सेंटस्मिय उत्तरी राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों) को गाहड़वालों के वंशज मानते हैं, और दक्षिणी राष्ट्रकूटों को दक्षिण की अनार्य जाति की सन्तान भनुमान करते हैं । परन्तु उपर्युक्त प्रमाणों के होते हुए यह अनुमान भी सिद्ध नहीं होता । इसके अलावा सोलकियों और यादवों की कन्याओं से दक्षिणी राष्ट्रकूटों का विवाह होना भी इन्हें शुद्ध क्षत्रिय प्रमाणित करता है ।। ___ कारमीरी पंडित कलण ने, वि० सं० की बारहवीं शताब्दी में, 'राजतरंगिणी' नामका कारमीर का इतिहास लिखा था । उसके सातवें तरङ्ग के एक कोक से ज्ञात होता है कि, उस समय भी क्षत्रियों के ३६ कुल माने जाते थे । जयसिंह ने वि० सं० १४२२ में 'कुमारपालचरित' बनाना प्रारम्भ किया था । उस में दिये क्षत्रियों के ३६ वंशों के नामों में केवल "राट' नाम ही मिलता है; गाहड़वालों का नाम नहीं दिया है । इसी प्रकार 'पृथ्वीराज रासो' में राठोड़ वंशका नाम ही मिलता है; गाहड़वाल वंश का उल्लेख नहीं है । साथही उसमें जयचन्द्र को राठोड़ लिखा है।
(१) एक वंश में विवाह न करने का नियम पूरी तौर से पालन नहीं किया जाता था।
इस विषय का खुलासा 'अन्य प्राक्षेप' नामक अध्याय की चौथी शङ्का के उत्तर में
मिलेगा ।( देखो पृ. ३१) (२) मी हिस्ट्री मॉफ इण्डिया, ( ई० स० १९२४ ) पृ. ४२६-४१. (३) "प्रख्यापयन्तः संभूति षट्विंशति कुलेषु ये। तेजस्विनो भास्वतोपि सहन्ते नोच्चक: स्थितिम् ॥ १६१७ । "
( तरंग ७)
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