________________
राष्ट्रकूट और गाहड़वाल उनके गाहड़वाल वंशी होने का उल्लेख है, न गाहड़वालों की प्रशस्तियों में उनके पालवंशी होने का । दूसरा, पालवंश का स्वतन्त्र राज्य स्थापन करने वाले गोपाल प्रथम से लेकर, उस वंश के अन्तिम नरेश तक, सब ही राजाओं के नामों के अन्तमें “पाल" शब्द लगा है; परन्तु गाहडवाल वंश के आठ राजाओं में केवल एक राजा के नाम के पीछे ही यह (पाल) शब्द लगा मिलता है ।
तीसरा, केवल एक शब्द के दो पुरुषों के नामों में मिलने से वे दोनों पुरुष एक नहीं माने जा सकते । आगे दोनों वंशों के राजाओं के नाम दिये जाते हैं:पालवंशी राजा
गाहड़वाल वंशी राजा विग्रहपाल.
यशोविग्रह महीपाल
महीचन्द्र
नयपाल
चन्द्रदेव
इनमें के विग्रहपाल और यशोविग्रह में “विग्रह", और महीपालं और महीचन्द्र में 'मही' शब्द समान हैं । इतिहास से प्रकट है कि, पालवंशी. महीपाल बड़ा प्रतापी राजा था । उसने अपने भुजबल से ही पिता के गये हुए राज्यको फिर से हस्तगत किया था; और अपने पुत्र (?) स्थिरपाल और वसन्तपाल द्वारा काशी में अनेक मन्दिर बनवाये थे । परन्तु गाहड़वाल महीचन्द्र एक स्वतंत्र शासक भी नहीं था । ऐसी हालत में, केवल ऐसे समान शब्दों के आधार परही, दो भिन्न पुरुषों को एक मान लेना हठ मात्र है । चौथा, पालवंशियों के शिलालेखों में विक्रम संवत् न लिखा जाकर उनका राज्य संवत् लिखा जाता था।
(१) पालवंशी महीपाल के, वि० सं० १०८३ (ई० स० १०२६) के, शिलालेख
और गाहड़वाल चन्द्र के सब से पहले, वि. सं. ११४८ (ई. स. १०६१) के, ताम्रपत्र में ६५ वर्ष का अन्तर है । ऐसी हालत में इन दोनों के बीच पिता पुत्र का सम्बन्ध मानना ठीक प्रतीत नहीं होता। इसके अलावा चन्द्रदेव का अन्तिम ताम्रपत्र वि. सं. ११५६ ( ई० स० १०६६) का है; जो इस सम्बन्ध में और
भी सन्देह उत्पन्न करता है। (२) पालवंशियों के लेखों में महीपाल का ही एक लेख ऐसा मिला है, जिसमें विक्रम
संवत् (१०३) लिखा है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com