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राष्ट्रकूटों का इतिहास
कार करलिया । इसके बाद कन्नौज की गद्दी इसके बड़े पुत्र मदनपाल को मिली, और छोटा पुत्र इसकी जिंदगी में ही बदायूं का शासक बना दिया गया ।
इसके बाद, जिस समय राजा जयच्चन्द्र के पुत्र हरिश्चन्द्र से कन्नौज प्रान्त छीन लिया गया, उस समय उसके वंशज खोर की तरफ़ होते हुए महुई : (फ़र्रुखाबाद जिले) में जारहे । परन्तु, जब वहां पर भी मुसलमानों ने अधिकार करलिया, तब जयच्चन्द्र का पौत्र (वरदाई सेन का छोटा पुत्र) सीहा, वहां से तीर्थयात्रा को जाता हुआ, मारवाड़ में पहुंचा। यहां पर आज तक उसके वंशजों का राज्य है, और वे अपने को सूर्यवंशी राठोड़ जयचन्द्र के वंशज मानते हैं ।
महुई के एक खंडहर को वहां के लोग अब तक "सीहाराव का खेड़ा" के नाम से पुकारते हैं। राव सीहा के वंशज राव जोधाजी थे । इन्होंने, वि० सं० १५१६ ( ई० स० १४५१ ) में, जोधपुर के किले और शहर की नींव रक्खी थी।
रावजोधा के ताम्रपत्र की सनद से पता चलता है कि, लुम्ब ऋषि नामका सारस्वत ब्राह्मण, सीहाजी के पौत्र धूहड़जी के समय, कन्नौज से इन ( राष्ट्रकूट नरेशों) की इष्टदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति लेकर मारवाड़ में आया था, और उसकी स्थापना नागाणा नामक गाँव में की गयी थी ।
किसी किसी हस्तलिखित प्राचीन इतिहास में इस मूर्ति का कल्याणी से लाया जाना लिखा है । परन्तु इस (कल्याणी) से भी कन्नौज के "कल्याण "कटक" का तात्पर्य लिया जाता है ।
इन सब बातों पर गौर करने से राष्ट्रकूटों और गाहड़वालों का एक होना सिद्ध होता है ।
डाक्टर हॉर्नले (Hornle ) गाहड़वाल वंश को पालवंश की शाखा मानते । उनका अनुमान है कि, पालवंशी महीपाल के ज्येष्ठ पुत्र नयपाल के वंशजों ने गौड़ देश में राज्य किया, और छोटे पुत्र चन्द्रदेव ने कन्नौज का राज्य लिया । परन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता; क्योंकि न तो पाल वंशियों के लेखों में
( १ ) कुछ लोग इसे दक्षिण का कोंकन मानते हैं । परन्तु उनका ऐसा मानना उपर्युक्त प्रमाण के होते हुए ठीक प्रतीत नहीं होता ।
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