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राष्ट्रकूटों का इतिहास गाहडवाल नरेश चन्द्रदेव का, वि० सं० ११४८ ( ई० स० १०६१) का, एक ताम्रपत्र चन्द्रावती ( बनारस जिले ) से मिला है । उसमें लिखा है:
"विध्वस्तोद्धतधीरयोधतिमिरः श्रीचंद्रदेवोनृपः। येनोदारतरप्रतापशमिताशेषप्रजोपद्रवं
श्रीमद्गाधिपुराधिराज्यमसमं दोर्विक्रमेणार्जितम् ॥" अर्थात्-इस वंश में ( यशोविग्रह का पौत्र ) चन्द्रदेव बड़ा प्रतापी राजा हुआ। इसी ने अपने बाहुबल से शत्रुओं को मारकर कन्नौज का राज्य लिया था ।
इस ताम्रपत्र में चन्द्रदेव के वंशका उल्लेख नहीं है।
ऊपरकी दोनों प्रशस्तियों पर विचार करने से प्रकट होता है कि, चन्द्रदेव ने पहले बदायूँ लेकर बाद में कन्नौज पर अधिकार करलिया था । इनमें से पहली प्रशस्ति राष्ट्रकूट-वंशी कहाने वाले चन्द्रकी है, और दूसरी कुछ समय बाद गाहड़वाल-वंशी के नाम से प्रसिद्ध होनेवाले चन्द्रकी । परन्तु इन दोनों राजाओं के समय आदि पर विचार करने से दोनों प्रशस्तियों के चन्द्रदेव का एक होना, और उसका कन्नौज विजय कर वहां पर गाहड़वाल-राज्य को स्थापित करना सिद्ध होता है । इनसे यह भी प्रकट होता है कि, चन्द्रदेव से दो शाखायें चलीं । इसका बड़ा पुत्र मदनपाल कन्नौज का राजा हुआ, और छोटे पुत्र विग्रहपाल को बदायूं की जागीर मिली । यद्यपि वदायूं वाले अपने को राष्ट्रकूट ही मानते रहे, तथापि कन्नौजवाले गाधिपुर-कन्नौज के शासक होने से कुछ काल बाद गाहड़वाल के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा०६, पृ. ३०२-३०५. (२) चंद बरदाई ने भी विग्रहपाल के वंशज लखनपाल को, जिसका लेख बदायूं से
मिला है, शायद जयचंद का भतीजा लिखा है । (३) डिंगल भाषा में “गाइड" शब्द का अर्थ मजबूती और ताकत होता है। इसलिए यह
भी सम्भव है कि, जब इस वंश के नरेशों का प्रताप बहुत बढ़ गया. तब इन्होंने यह उपाधि धारण करली । अथवा जिस प्रकार संयुक्त प्रान्त के रैका नामक ग्राम में रहने से कुछ राठोड़ ' रैकवाल' के नाम से प्रसिद्ध होगये, उसी प्रकार गाधिपुर ( कन्नौज ) में रहने से या वहां के शासक होने से ये राठोड़ भी 'गाहडवाल' कहाने लगे हों; क्योंकि गाधिपुर के प्राकृत रूप “गाहितर" का बिगड़कर गाहड़ होजाना कुछ असम्भव नहीं है। इसके बाद अब सीहाजी आदि का सम्बन्ध कन्नौज से छूट गया, तब वे फिर अपने को राठोड़ कहने लगे थे।
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