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राष्ट्रकूट और गाहड़वाल
पहले लिखा जा चुका है. कि, राष्ट्रकूट वास्तव में उत्तरी भारत के निवासी थे, और वहीं से दक्षिण की तरफ़ गये थे । पूर्वोद्धृत सोलंकी त्रिलोचनपाल के, श० सं० १७२ के, ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, सोलंकियों के मूल - पुरुष चालुक्य का विवाह कन्नौज के राष्ट्रकूट राजा की कन्या से हुआ था । इसी प्रकार 'राष्ट्रौढवंश महाकाव्य' से भी पहले एकवार कन्नौज में राष्ट्रकूटों का राज्य रहना पाया जाता है ।
राष्ट्रकूट राजा लखनपाल का एक लेख बदायूं से मिला है । ( इस लखनपाल का समय वि० सं० १२५८ ( ई० स० १२०० ) के करीब आता है । ) उस में लिखा है:
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" प्रख्याताखिलराष्ट्रकूटकुलजदमापालदोः पालिता । पाञ्चालीभिधदेशभूषणकरी वोदामयुतापुरी |
तत्रादितोभवदनन्तगुणो नरेन्द्रश्चन्द्रः स्वखड्गभयभीषितवैरिवृन्दः । "
अर्थात् - प्रसिद्ध राष्ट्रकूट वंशी राजाओं से रक्षित, और कन्नौज की अलङ्कार रूप, बदायूं नगरी है | वहां पर पहले, अपनी शक्ति से शत्रुओं का दमन करने वाला चन्द्र नामका राजा हुआ
(१) ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० १, पृ० ६४
( २ ) श्रीयुत सन्याल इस लेखको वि० सं० १२५६ ( ई० स० १२०२ ) के पूर्व का अनुमान करते हैं । इस पर आगे विचार किया जायगा ।
(३) गाहडवाल चन्द्रदेव के, चन्द्रावती से मिले, वि० सं० ११५० के, दानपत्र में भी, बदायूं के लेख की तरह, कन्नौज के लिए पंचाल शब्द का प्रयोग किया गया है:
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पंचाचूल चुम्बन चणचन्द्रहासो ...
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( ऐपिग्राफिया इण्डिका, भा० १४, पृ० १६३ )
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