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राष्ट्रकूटों का इतिहास
यह गाहड़वाल राठोड़ राष्ट्रकूट ही थे । ( यह बात आगे सिद्ध की जायगी ) इसलिए राष्ट्रकूटों का सूर्यवंशी होना ही मानना पड़ता है ।
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(१) राष्ट्रकूटों की सब से पहली प्रशस्ति (ताम्रपत्र ) राजा अभिमन्यु की मिली है । यद्यपि इस पर संवत् श्रादि नहीं हैं, तथापि इसके अक्षरों को देखने से इसका विक्रम की सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ की होना सिद्ध होता है । इस पर की मुहर में ( अम्बिकाके वाहन ) सिंह की मूर्ति बनी है। कृष्णराज प्रथम के सिक्के पर उसे “परम माहेश्वर" लिखा है | परन्तु राष्ट्रकूटों के पिछले ताम्रपत्रों में सिंहका स्थान गरुड़ ने लेलिया है । इससे अनुमान होता है कि, पिछले दिनों में इनपर वैष्णवमत का प्रभाव पड़गया था । ( भगवानलाल इन्द्रजी ने भी इनके ताम्रपत्रों की मुहरों को देखकर यही अनुमान किया था । जर्नल बॉम्बे एशियाटिक सोसाइटी, भा. १६, १.६ ) इसीसे भावनगर के गोहिल राजाओं की तरह ये भी सूर्यवंशी के स्थान में चन्द्रवंशी समझे जाने लगे । पहले जिस समय खेड़ ( मारवाड़ ) में गोहिलों का राज्य था, उस समय वे सूर्यवंशी समझे जाते थे । परन्तु काठियावाड़ में जा बसने पर, वैष्णवमत के प्रभाव के कारण, वे चन्द्रवंशी समझे जाने लगे । यह बात इस छप्पय से प्रकट होती है:
"चन्द्रवंशि सरदार गोत्र गौतम बक्खां शाखा माधविसार के प्रवरत्रय जां अग्निदेव उद्धार देव चामुण्डा देवी पाण्डव कुल परमाण प्राय गोहिल चल एवी
विक्रम बध करनार नृप शालिवाहन चकवै थयो ते पछी तेन प्रलादनो सोरठमा सेजक भयो । ”
अशोक की गिरनार पर्वत पर खुदी पांचवीं प्राज्ञा में राष्ट्रकूटों का उल्लेख होने से इनका भी तक प्रदेश से सम्बन्ध रहना पाया जाता है ।
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