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राष्ट्रकूटों का वंश वि० सं० १६५३ में बने 'राष्ट्रौढवंश महाकाव्य' का उल्लेख पहले कर चुके हैं । उसमें लिखा है कि, लातनादेवी ने, चन्द्र से उत्पन्न हुए कुमार को लाकर, पुत्र के लिए तपस्या करते हुए, कन्नौज के सूर्यवंशी राजा नारायण को सौंपदिया, और उस सूर्यवंशी राजा के राज्य और कुल का भार वहन करने से वह कुमार “राष्ट्रोढ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
इस से भी उस समय राठोड़ों का सूर्यवंशी माना जाना सिद्ध होता है।
इसी प्रकार कन्नौज के गाहडवाल राजाओं के लेखों में भी उन्हें सूर्यवंशी ही लिखा है:
"आसीदशीतद्युतिवंशजातः क्षमापालमालासु दिवं गतासु ।
साक्षाद्विवस्वानिव भूरिधाम्ना नाम्ना यशोविग्रह इत्युदारः॥" अर्थात्-बहुत से सूर्यवंशी राजाओं के स्वर्ग चले जाने पर, साक्षात् सूर्य के समान प्रताप वाला, यशोविग्रह नाम का राजा हुआ ।
"पुरा कदाचिन तये समेतान्,देवाननुज्ञाप्य गृहाय सद्यः । कात्यायनीमर्द्धमृगाङ्कमौलिः, कैलासशैले रमयाम्बभूव ॥ १२ ॥
- - - - - - - - अन्योन्यभूषापणबन्धरम्यं, तत्रान्तरे द्यूतमदीव्यतां तौ ॥ १४ ॥
- - - - - - - - कात्यायनीपाणिसरोजकोश-विलोलिताक्षक्षपितादथेन्दोः। गर्भान्वितैकादशवार्षिकोऽभूदभूतपूर्वाप्रतिमः कुमारः ॥ २० ॥
- --- - - - - - - तस्मै वरं साम्बशिवो दयालुः, श्रीकान्यकुब्जेश्वरतामरासीत् ॥ २३ ॥ अत्रान्तरे काचन लातनाख्या, समेत्य देवी गिरिजाहराभ्याम् ।। विलीनभूमीपतिकान्यकुब्ज-राज्याधिपत्याय शिशुं ययाचे ॥ २४ ॥
नारायणो नाम नृपः सुतार्थी, यत्रेश्वरं ध्यायति सूर्यवंश्यः । सा रुद्रदत्तेन सहामुनास्मिन्नवातरत्काञ्चनमेखलेन ॥ २८ ॥ अलक्ष्यदेहा तमवोचदेषा, राजन्नसावस्तु तवैकसूनुः । अनेन राष्ट्रं च कुलं तवोढं, राष्ट्रौष्ट्रिो) ढनामा तदिह प्रतीतः ॥ २६॥
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