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राष्ट्रकूटों का इतिहास ___ अर्थात्-जिस प्रकार श्रीकृष्ण के उत्पन्न होने पर यदुवंश शत्रुओं से अजेय हो गया था, उसी प्रकार इस गुणीराजा के उत्पन्न होने पर राष्ट्रकूट वंश भी शत्रुओं से अजेय हो गया। ___ इससे ज्ञात होता है कि, वि० सं० ८६५ ( ई० स० ८०८ ) तक यह राष्ट्रकूट वंश यदुवंश से भिन्न समझा जाता था । परन्तु पीछे से अमोघवर्ष प्रथम के, श० सं० ७८२ वाले, दानपत्र के लेखक ने, उपर्युक्त लेख में के यादववंश के उपमान और राष्ट्रकूट वंश के उपमेय भाव को न समझ, इस वंश को और यादववंश को एक मानलिया, और बाद के ७ प्रशस्तियों के लेखकों ने भी बिना सोचे समझे उसका अनुसरण कर लिया।
__यहां पर यह शंका की जा सकती है कि, यदि राष्ट्रकूट वास्तव में ही चंद्रवंशी न थे तो उन्होंने इस गलती पर ध्यान क्यों नहीं दिया । परन्तु इस विषय में यह एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा कि, यद्यपि मेवाड़ के महाराणाओं का सूर्यवंशी होना प्रसिद्ध है, तथापि स्वयं महाराणा कुम्भकर्ण ने, जो एक विद्वान् नरेश था, पुराने लेखकों का अनुसरण कर, अपनी बनाई 'रसिकप्रिया' नाम की गीत गोविन्द' की टीका में अपने मूल पुरुष बप्प को ब्राह्मण लिख दिया है:
"श्रीवैजवापेनसगोत्रवर्यः श्रीवप्पनामा द्विजपुंगवोभूत्" ॥
(१) यादव राजा भीम के, प्रभास पाटन से मिले, वि. सं. १४४२ के, लेख में लिखा है:
"वशो ( शौ ) प्रसिद्धो (खौ) हि यथारवीन्दो (न्द्रोः) राष्टोडवंशस्तु तथा तृतीयः॥ यत्राभवद्धर्मनृपोऽतिधर्म
स्तस्माच्छिवं मा ( सा ) यमुना जगाम ॥ १० ॥" प्रर्थात्-जिस प्रकार सूर्य और चन्द्र ये दोनों वंश प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार तीसरा राठोड़ वंश भी
प्रसिद्ध है। इसमें धर्म नामका पुण्यात्माराजा हुा । उसीके साथ भीम की कन्या यमुना का विवाह हुआ था।
( बॉम्बे गज़टियर, भा. १ हिस्सा २, पृ. २०८-२०६;
भौर साहित्य, खंड १, भा० १, पृ. २७६-२८१)
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